Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १,४५. ]
सामित्ताणुगमे णाणमग्गणा
[ ८७
समियतं ? आवरणे संते वि आवरणिज्जस्स णाणस्स एगदेसो जम्हि उदए उबलब्भदे तस्स भावस्स खओवसमववएसादो खओवसमियत्तमण्णाणस्स ण विरुज्झदे | अधवा णाणस्स विणासो खओ णाम, तस्स उवसमो एगदेसक्खओ, तस्स खओवसमसण्णा । तत्थ णाणमण्णाणं वा उप्पज्जदि ति खओवसमिया लद्धी बुच्चदे |
एवं सुदअण्णाण विभंगणाण- आभिणिबोहियणाण-सुद-ओहि मणपज्जवणाणाणं पि खओवसमिओ भावो वत्तव्वो । णवरि अष्पष्पणो आवरणाणं देसघादिफद्दयाणमुदण खओवसमिया लद्धी होदि त्ति वत्तव्यं । सत्तण्हं णाणाणं सत्त चेव आवरणाणि किण्ण होदिति चे १ण, पंचणाणवदिरित्तणाणाणुवलंभा । मदिअण्णाण - सुदअण्णाण विभंगणाणाणमभावो वि णत्थि, जहाकमेण आभिणिबोहिय-सुद-ओधिणाणेसु तेसिमंतभावादो ।
पुव्वमिंदिय-जोगमग्गणासु खओवस मियभावपरूवणाए सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खण तेसिं चैव संतोवसमेण देसघादिफद्दयाणमुद एणेत्ति परूविदं । संपहि दोन्हं पडिसेहं काण देसघादिफद्दयाणमुदपणेव खओवसमियभावो होदि त्ति परूवेंतस्स सुववयण
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समाधान-आवरणके होते हुए भी आवरणीय ज्ञानका एक देश जहांपर उदयमें पाया जाता है उसी भावको क्षायोपशमिक नाम दिया गया है। इससे अज्ञानको क्षायोपशमिक भाव माननेंमे कोई विरोध नहीं आता । अथवा, ज्ञानके विनाशका नाम क्षय है । उस क्षयका उपशम हुआ एक देश क्षय । इस प्रकार ज्ञानके एकदेशीय क्षयकी क्षयोपशम संज्ञा मानी जा सकती है। ऐसा क्षयोपशम होनेपर जो ज्ञान या अज्ञान उत्पन्न होता है उसीको क्षायोपशमिक लब्धि कहते हैं ।
इसी प्रकार श्रुताज्ञान, विभंगज्ञान, आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञानको भी क्षायोपशमिक भाव कहना चाहिये । विशेषता केवल यह है कि इन सब ज्ञानोंमें अपने अपने आवरणोंके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे क्षायोपशमिक लब्धि होती है, ऐसा कहना चाहिये ।
शंका- इन सातों शानोंके सात ही आवरण क्यों नही होते ?
समाधान - नहीं होते, क्योंकि, पांच ज्ञानोंके अतिरिक्त अन्य कोई ज्ञान पाये नहीं जाते । किन्तु इससे मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान और विभंगज्ञानका अभाव नहीं हो जाता, क्योंकि, उनका यथाक्रमसे आभिनिबोधिकशान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञानमें अन्तर्भाव होता है।
शंका- पहले इन्द्रियमार्गणा और योगमार्गणा में सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयक्षय से, उन्हीं स्पर्धकोंके सत्त्वोपशमसे तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे क्षायोपशमिक भावकी प्ररूपणा की गयी है । किन्तु यहांपर सर्वघाती स्पर्ध कोंके उदयक्षय और उनके सत्त्वोपशम इन दोनों का प्रतिषेध करके केवल देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे क्षायोपशमिक भाव होता
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