Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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६८ ]
छक्खडागमे खुदाबंधी
[ २, १, १६.
समियं पंचिदियत्तं जुज्जदे । अधवा खीणावरणे गड्डे वि पंचिंदियखओवसमे खओवसमजणिदाणं पंचं बज्झिदियाणमुवयारेण' लद्धखओवसमसण्णाणमत्थित्तदंसणादो सजोगिअजोगिजिणाणं पंचिदियत्तं साहेयमं ।
अणिदिओ णाम कथं भवदि ? ॥ १६ ॥
एत्थ पुव्वं व य-णिक्खेवे अस्सिदूण चालणा कायव्त्रा । खइयाए लद्धीए ॥ १७ ॥
एत्थ चोदगो भणदि - इंदियमए सरीरे विणट्ठे इंदियाणं पि णियमेण विणासो, अण्णा सरीरिंदियाणं पुत्रभाव पसंगादो | इंदिएस विणट्ठेसु णाणास्स विणासो, कारण विणा कज्जुप्पत्तीविरोहादो । णाणाभावे जीवविणासो, णाणाभावेण णिच्चेयणत्तबुत्तस्स जीवत्तविरोहादो । जीवाभावे ण खड्या लद्धी वि, परिणामिणा विणा परिणामाणमत्थित्तविरोहादोति । णेदं जुज्जदे | कुदो ? जीवो णाम णाणसहावा, अण्णहा
सयोगी और अयोगी जिनोंके क्षयोपशमिक पंचेन्द्रियत्व सिद्ध हो जाता है । अथवा, आवरण के क्षीण होने से पंचेन्द्रियों के क्षयोपशमके नष्ट हो जानेपर भी क्षयोपशम से उत्पन्न और उपचारसे क्षायोपशमिक संज्ञाको प्राप्त पांचों बाह्येन्द्रियोंका अस्तित्व पाये जाने योगी और अयोगी जिनोंके पंचेन्द्रियत्व सिद्ध कर लेना चाहिये ।
जीव अनिन्द्रिय किस प्रकार होता है १ ।। १६ ।
यहां पूर्वानुसार नयों और निक्षेपका आश्रय लेकर चालना करना चाहिये । क्षायिक लब्धिसे जीव अनिन्द्रिय होता है ।। १७ ॥
शंका- यहां शंकाकार कहता है- इन्द्रियमय शरीर के विनष्ट हो जानेपर इन्द्रियोंका भी नियमसे विनाश होता है, अन्यथा शरीर और इन्द्रियों के पृथग्भावका प्रसंग आता है । इस प्रकार इन्द्रियोंके विनष्ट हो जानेपर ज्ञानका भी विनाश हो जायगा, क्योंकि, कारणके विना कार्यकी उत्पत्ति माननेमें विरोध आता है । ज्ञानके अभावमें जीवका भी विनाश हो जायगा, क्योंकि, ज्ञानरहित होनेसे निश्चेतन पदार्थ के अवत्व मानने में विरोध आता है । जीवका अभाव हो जानेपर क्षायिक लब्धि भी नहीं हो सकती, क्योंकि, परिणामी के विना परिणामों का अस्तित्व माननेमें विरोध आता है । ( इस प्रकार इन्द्रियरहित जीवके क्षायिक लब्धिकी प्राप्ति सिद्ध नहीं होती ) ?
समाधान - यह शंका उपयुक्त नहीं है, क्योंकि, जीव ज्ञानस्वभावी है, नहीं तो
१ प्रतिषु ' - मुवयारे ' इति पाठः ।
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