Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५२) - छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, १, ११. चत्वारि सहस्साई णव सयाई छच्चेव होइ । ४९०६ || तिरिक्खाणं सव्वभंगसमासो पंच सहस्साणि अट्टणाणि | ४९९२ | । पंचिंदियतिरिक्खुदयट्ठाणाणं सामित्तं कालो च पुव्वं . व वत्तव्यो। णवरि तीसेक्कतीसाणं कालो जहण्णेण अंतोमुहुत्तमुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तणाणि तिण्णि पलिदोवमाणि ।
मणुस्साणं' सामण्णण एक्कारसुदयट्ठाणाणि वीस-एकवीस-पंचवीस-छव्वीससत्तावीस-अट्ठावीस-एगूणतीस-तीस-एकत्तीस-णव-अट्ट होंति । २०।२१।२५।२६ । २७ । २८ । २९।३०।३१ । ९ । ८। सामण्णमणुस्सा विसेसमणुस्सा विसेसविसेसमणुस्सा त्ति तिविहा मणुस्सा । सामण्णमणुस्साणं भण्णमाणे तत्थ इमं एक्कत्रीसाए ट्ठाणं- मणुस्सगदि-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-मणुस्सगदि
है ( ४९०६)।
उद्योत रहित उद्योत सहित २१ प्रकृतियोंवाले उदयस्थान ९ ९ पूर्व भंगोंके ही समान होनेसे
२८९ २८९ । इन्हें नहीं जोड़ा गया।
__ ५७६ + ५७६ , ११५२ + ५७६
x ११५२
२६०२ + २३०४ = ४९०६ पंचेन्द्रिय तिर्यचोंके उदयस्थानोंके स्वामित्व और कालका कथन पूर्वानुसार अर्थात् जैसा नारकियोंके उदयस्थानोंकी प्ररूपणामें कर आये हैं उसी प्रकार करना चाहिये । यहां विशेषता इतनी है कि तीस और इकतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम है।
मनुष्योंके सामान्यतः वीस, इक्कीस, पच्चीस, छव्वीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस, नौ और आठ प्रकृतियोंवाले ग्यारह स्थान होते हैं । २० । २१ । २५ । २६ २७ । २८ । २९ । ३० । ३१ । ९।८।
मनुष्य तीन प्रकारके हैं- सामान्य मनुष्य, विशेष मनुष्य और विशेष-विशेष मनुष्य । सामान्य मनुष्योंके कथनमें यह प्रथम इक्कीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान है-- मनुष्यगति', पंचेन्द्रिय जाति', तैजस और कार्मण शरीर, वर्ण', गंध', रस, स्पर्श', मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी', अगुरुलघुक", त्रस', वादर", पर्याप्त और अपर्याप्तमेसे
१ प्रतिषु · मस्साणि ' इति पाठः ।
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