Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपरूवणा
[ ५१ उज्जोवुदयसंजुत्तचिंदियतिरिक्खस्स एक्कवीस-छब्बीसुदयट्ठाणाई पुव्वं व वत्तव्वाइं । पुणो सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स परघादुज्जोवेसु पसत्थापसत्थाण विहायगदीणमेक्कदरे च पविद्वेसु एगुणतीसाए हाणं होदि । भंगा पंच सदा छावत्तरा|५७६ । पुणो एदेसु पढमेगुणतीसाए भंगेसु पक्खित्तेसु सबभंगपमाणं एक्कारस सदाणि बावण्णाणि होदि | ११५२ । । आणापाणपजत्तीए पजत्तयदस्स उस्सासे पक्खित्ते तीसाए हाणं होदि। एत्थ पंच सदा छावत्तरि भंगा |५७६ । पुणो एदेसु पढमतीसाए भंगसु छुद्धेसु सत्तारस सयाइमट्ठवीसाइं तीसाए सव्वभंगा होति । १७२८।। भासापज्जत्तीए पजत्तयदस्स सुस्सर-दुस्सराणमेक्कदरे छुद्धे एक्कत्तीसाए हाणं होदि । भंगा एक्कारस सदाणि बावण्णाणि । ११५२] । पंचिंदियतिरिक्खाणं सव्वभंगसमासो
उद्योतोदयके सहित पंचेन्द्रिय तिर्यचके इक्कीस और छब्बीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थान पूर्वोक्त प्रकारसे ही कहना चाहिये । पुनः शरीरपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले पंचन्ति
न्द्रिय तिर्यचके उक्त छव्वीस प्रकृतियों में परघात, उद्योत, और प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगतियों से कोई एक, इस प्रकार तीन प्रकृतियां मिलादेनेसे उनतीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है । यहां ( सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति-अयशकीर्ति, छह संस्थान, छह संहनन, और प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, इनके विकल्पसे) भंग पांच सौ छयत्तर होते हैं (५७६ ) । पुनः इन भंगोंको पूर्वोक्त उनतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थान सम्बन्धी भंगोंमें मिलादेनेसे उनतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानोंके सब भंगोंका योग ( ५७६५५७६= ) ११५२ ग्यारह सौ बावन हो जाता है।
____आनप्राणपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचके पूर्वोक्त उनतीस प्रकृतियों में उच्छ्वास मिलादेनेपर तीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है। यहां भंग (पूर्वोक्त प्रकारसे) पांच सौ छयत्तर हैं (५७६) । पुनः इन भंगोंमें पूर्वोक्त तीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थान सम्बन्धी ११५२ भंग मिलादेनेपर तीस प्रकृतियोवाले उदयस्थान सम्बन्धी सव भंगोका योग (१९५२+५७६= ) १७२८ सत्तरह सौ अट्ठाईस होता है।
भाषापर्याप्तिको पूर्ण करलेनेवाले पंचेन्द्रिय तिर्यचके पूर्वोक्त तीस प्रकृतियों में सुस्वर और दुस्वर इनमेंसे कोई एक मिलादेनेपर इकतीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है। यहां भंग ( सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति अयशकीर्ति, छह संस्थान, छह संहनन, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, और सुस्वर-दुस्खरके विकल्पोंसे) ग्यारह सौ बावन होते हैं (११५२)।
पंचन्द्रिय तिर्यंचोंके समस्त भंगोंका योग चार हजार नौ सौ छह होता
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