Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १, ११.]
सामित्ताणुगमे उदयट्ठाण परूवणा
[ १९
गाथा नं. १३ में विकल्प के नामोल्लेख परसे उसकी क्रमिक संख्या जाननेकी विधि यतलाई गयी है । उदाहरणार्थ- हम जानना चाहते हैं कि दुर्भग, अनादेय, अयशकीर्ति न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान और कीलकशरीरसंहनन कौनसे नम्बरके भंगमें आवेंगे। यहां १ अंकको रखकर उसे अन्तिम पिंडमान ६ से गुणा किया और लब्धमें ले अनंकित १ घटा दिया, क्योंकि, कीलकशरीर पांचवां संहनन है। घटानेसे जो ५ बचे उन्हें अगले पिंडमान ६ से गुणा किया जिससे लब्ध आये ३० । इसमेंसे घटाये ४, क्योंकि, न्यग्रोधपरिमंडल ६ संस्थानों से दूसरा ही है। शेष बचे २६ को उससे पूर्ववर्ती पिंडमान दोसे गुणा किया और घटाया कुछ नहीं, क्योंकि, पिंडमान दोमेंसे द्वितीय प्रकृतिको ही ग्रहण किया है अतः अनंकित कुछ नहीं है । इस प्रकार लब्ध ५२ को पुनः २ से गुणा किया फिर भी कुछ नहीं घटाया, क्योंकि, यहां भी दोमेंसे दूसरी ही प्रकृति ग्रहण की है। अतएव लब्ध हुए १०४ जिसे पुनः प्रथम पिंडमान २ से गुणा किया और यहां भी कुछ नहीं घटाया, क्योंकि, यहां भी दुसरी प्रकृति ग्रहण की है। अतएव उक्त विकल्पकी क्रमिक संख्या १०४४२२०८ वीं हुई।
इस प्रकार जहां भी अनेक पिंडान्तर्गत विशेषोंके विकल्पसे अनेक भंग बनते हैं वहां उनकी संख्यादि ज्ञात की जा सकती है। नीचे दो यंत्र दिये जाते हैं जिनसे किसी भी भंगसंख्याके आलापका व किसी भी आलापसे उसकी भंगसंख्याका ज्ञान पांचों अक्षोंके कोटकोंमें दिये हुए अंकोंके जोड़नेसे प्राप्त किया जा सकता है
प्रथम प्रस्तार ( गाथा २० ) की अपेक्षा भंगोंके जाननेका यंत्र
सुभग | दुर्भग
२
आदेय
| अनादेय
यशकीर्ति अयशकीर्ति
समचतु. न्यग्रोध.
स्वाति.
कुब्जक.
वामन ३२
हुण्डक. ४०
वज्रवृषभ. वज्रनाराच.
नाराच. अर्धनाराच. कीलित. असंप्राप्ति.
। १९२ । २४०
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