Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१८]
छक्खंडागमै खुद्दाबंधो
[२, १, ११.
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द्वितीय प्रस्तारकी अपेक्षा (गाथा नं. ११ के अनुसार) आलापभेदोंका क्रम निम्न प्रकार होगा
१ सुभग, आदेय, यशकीर्ति, समचतुरन., वज्रवृषभ. २ दुर्भग " ३ सुभग, अनादेय
दुर्भग सुभग, अयशकीर्ति, दुर्भग
सुभग, अनादेय ८ दुर्भग ९ सुभग, आदेय, यशीर्ति, न्यग्रोध. १० दुर्भग , ,
, इस प्रकार जैसे यहां आदेय सहित २, अनादेय सहित २, फिर अयशकीर्तिआदेय सहित २ और अयशकीर्ति-अनादेय सहित २ ऐसे ८ भंग वने हैं, वैसे ही न्यग्रोध-यशकीर्ति-आदेय सहित २, न्यग्रोध-यशकीर्ति-अनादय सहित २, न्यग्रोध अयशकीर्ति-आदेय सहित २ और न्यग्रोध-अयशकीर्ति-अनादेय सहित २ ऐसे ८ भंग बनेंगे और फिर शेष चार संस्थानोंके भी क्रमशः आठ आठ भंग होकर छहों संस्थानोंके ४८ भंग होंगे । जिस प्रकार ये ४८ भंग प्रथम संहनन सहित हुए हैं उसी प्रकार शेष पांच संहननोंके भी क्रमशः अड़तालीस अड़तालीस भंग होकर सब भंगोंका योग ४८४६-२८८ हो जायगा।
गाथा नं.११ में क्रमिक संख्यापरसे विवक्षित भंग जाननेकी विधि बतलाई है। उदाहरणार्थ- हमें यह जानना है कि उक्त २८८ भंगोंमेंसे १४५ वां भंग कौनसा होगा। अब हमें १४५ को सबसे पहले प्रथम पिंडमान २ से भाजित करना चाहिये जिससे लब्ध ७२ आये और शेष बचा १ । अतएव प्रथम स्थानमें सुभग है। फिर लब्धमें १ मिलाकर दूसरे पिंडप्रमाण २ का भाग देनेसे लब्ध आये ३६ और शेष बचा १ । इससे जाना गया कि दूसरे स्थानमें आदेय है। फिर लब्धमें १ मिलाकर तीसरे पिंडमान २ का भाग देनेसे लब्ध आये १८ और शेष रहा १। इससे जाना कि तीसरे स्थानमें यशकीर्ति है । फिर लब्धमे एक मिलाकर चौथे पिंडमान ६ का भाग देनेसे लब्ध आये ३
और शेष बचा १ । इससे जाना कि चौथे स्थानमें समचतुरस्रसंस्थान है। फिर लब्धमें १ मिलानेपर अन्तिम पिंडमान ६ का भाग न जाकर शेष बचे ४ से अन्तिम पिंडकी चौथी प्रकृति अर्धनाराचसंहनन समझना चाहिये । अतएव १४५ वां भंग सुभग आदेय यशकीर्ति समचतुरस्रसंस्थान व अर्धनाराचसंहनन प्रकृतियोंवाला होगा।
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