Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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[२, १, ११.
छक्खंडागमे खुद्दाबंधो सगमाणेण विहत्ते सेसं लक्खित्तु पक्खिवे' रूवं । लक्खिजंते सुद्धे एवं सव्वत्थ कायव्वं ॥ १२ ॥ संठाविदूण रूपं उवरीदो संगुणित्तु सगमाणे । अवणेज्जोणंकिदयं कुज्जा पढमंतियं जावं ॥ १३ ॥
जितनेवां उदयस्थान जानना अभीष्ट हो उसी स्थानसंख्याको पिंडमानसे विभक्त करे । जो शेष रहे उसे अक्षस्थान समझे । पुनः लब्धमें एक अंक मिलाकर दूसरे पिंडमानका भाग देवे और शेषको अक्षस्थान समझे। जहां भाग देनेसे कुछ न बचे वहां अन्तिम अक्षस्थान समझे और फिर लब्धमें एक अंक न मिलावे । इस प्रकार समस्त पिंडों द्वारा विभाजनक्रिया करनेसे उद्दिष्ट स्थान निकल आता है ॥ १२ ॥
एक अंकको स्थापित करके आगेके पिंडका जो प्रमाण हो उससे गुणा करे और लब्धमेंसे अनंकितको घटा दे। ऐसा प्रथम पिंडके अंत तक करता जावे। इस प्रकार उदिष्ट निकल आता है ॥ १३ ॥
विशेषार्थ-पूर्वोक्त सात गाथाओंमें यह बतलाया गया है कि जब अनेक पिंडोंके अन्तर्गत विशेष पदोंके विकल्पोंसे भिन्न भिन्न भंग बनते हैं तब उन सब भंगोंकी संख्या किस प्रकार निकाली जाय, उस संख्याप्रमाण सब भंगोंको क्रमसे जाननेके लिये किस किस प्रकार विस्तार किया जा सकता है, उस विस्तारसे किस प्रकार भंगोंमें परिवर्तन होते हैं, किसी स्थानविशेषकी क्रमसंख्यामात्रके उल्लेखसे उस स्थानवर्ती विशेषोंको कैसे जाना जा सकता है या विशेषोंके नामोल्लेखसे उसकी क्रमसंख्या किस प्रकार जानी जा सकती है। गाथा नं. ७ में इन्हीं प्रक्रियाओंके पांच नामोंका उल्लेख है । भंगाके प्रमाणको संख्या, उस संख्याप्रमाण भंग प्राप्त करनेकी प्रक्रियाको प्रस्तार, उत्तरोत्तर एक एक विकल्पके नामपरिवर्तनको परिवर्तन, क्रमिक संख्या उल्लेखसे विकल्पके विशेषों को जाननेके प्रकारको नष्ट, और विकल्प-विशेषके नामोल्लेखसे उसकी क्रमिक संख्याको जाननेके प्रकारको समुद्दिष्ट कहा है।
गाथा नं. ८ में भंगोंकी सम्पूर्ण संख्या निकालने का प्रकार बतलाया गया है जिसका उपयोग प्रकृतमें पंचेन्द्रिय जीवोंके सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति अयशकीर्ति, छह संस्थान और छह संहनन, इनके विकल्पों द्वारा उत्पन्न उदयस्थामोंकी भंगसंख्या निकालने में किया जा सकता है। इसके लिये प्रक्रिया यह है कि प्रकृत पिंडप्रमाणोंकी संख्याओंको क्रमशः रखकर परस्पर गुणा कर दो जिससे २४२४२४६४६-२८८ दो सौ अठासी विकल्प आ जाते हैं।
१ प्रतिषु 'पक्खिमे ' इति पाठः । प्रतिषु संधाविदण' इति पाठः।
२ गो. जी. ४१. ४ गो. जी. ४२.
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