Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपरूवणा
[ ३३ पाओग्गाणुपुव्वि-अगुरुअलहुअ-तस-चादर-पजत्त-थिराथिर-सुभासुभ-दुभग-अणादेख-अजसगित्ति-णिमिणाणि त्ति एत्तियाओ पयडीओ घेत्तूण इगिवीसाए ठाणं होदि । एत्थ भंगो एक्को चेव | १ || एदमुदयट्ठाणं कस्स होदि ? विग्गहगदीए वट्टमाणस्स गैरइयस्स । तं केवचिरं कालं होदि ? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे समया।
____तत्थ इमं पणुवीसाए हाणं । एदाओ चेव पयडीओ। णवरि आणुपुबीमवणेदण वेउव्वियसरीर-हुंडसंठाण-वेउब्वियसरीरअंगोवंग-उवघाद-पत्तेयसरीराणि पुव्वुत्तपयडीसु पक्खित्ते पणुवीसहं ठाणं होदि । तं कस्स ? सरीरंगहिदणेरइयस्स । तं केवचिरं
स्पर्श', नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी', अगुरुलघुक, त्रस', बादर, पर्याप्त, स्थिर"
और अस्थिर'५, शुभ और अशुभ", दुर्भग, अनादेय", अयशकीर्ति और निर्माण, इन प्रकृतियोंको लेकर इक्कीस प्रकृतियों सम्बन्धी पहला स्थान होता है । यहां भंग एक ही हुआ (१)।
शंका-यह इक्कीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान किसके होता है ? __ समाधान-विग्रहगतिमें वर्तमान नारकी जीवके यह इक्कीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है।
शंका-यह उदयस्थान कितने काल तक रहता है ?
समाधान-यह उदयस्थान कमसे कम एक समय और अधिकसे अधिक दो समय तक रहता है।
उन नारकियोंका पच्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान यह है- इन्हीं उपर्युक्त इक्कीस प्रकृतियोंमेंसे नरकगतिआनुपूर्वीको छोड़कर वैक्रियिकशरीर, हुंडसंस्थान, वैक्रियिकशरीराङ्गोपाङ्ग, उपघात और प्रत्येकशरीर, इन पांच प्रकृतियोंको मिला देनेसे पञ्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है।
शंका-यह पच्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान किसके होता है ?
समाधान—जिस नारकी जीवने शरीर ग्रहण कर लिया है उसके यह पञ्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है।
शंका- यह उदयस्थान कितने काल तक रहता है ?
१ णामधुवोदयबारस गइ-जाईणं च तसतिजुम्माणं । सुभगादेज्जजसाणं जुम्मेक्कं विग्गहे वाणू ॥ गो. क. ५८८.
२ विग्गहकम्मसरीरे सरीरमिस्से सरीरपज्जत्ते । आणा-बचिपज्जत्ते कमेण पंचोदये काला ॥ एक्कं व दो तिषिण व समया अंतोमुहुत्यं तिसु वि । हेट्ठिमकालूणाओ चरिमस्स य उदयकालो दु । गो. क. ५८३-५८४.
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