Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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हार - पच्चयाणमुवलंभा ।
छक्खंडागमे खुदाबंधो
देवगदीए देवो णाम कथं भवदि ? ॥ १० ॥
सुगममेदं ।
देवग दिणामाए उदएण ॥ ११ ॥
कुदो देवगदिणामकम्मोदयजणिद अणिमादिपजयपरिणदजीवम्मि देवाहिहाणववहार- पच्चयाणमुवलंभा । णिरय-तिरिक्ख - मणुस देवगदीओ जदि केवलाओ उदयमागच्छंति तो णिरयगदिउदएण णेरइओ, तिरिक्खगदिउदएण तिरिक्खो, मणुस्सगदिउदरण मणुसो, देवगदिउदएण देवो त्ति वोत्तुं जुत्तं । किं तु अण्णाओ वि पयडीओ तत्थ उदयमागच्छंति, ताहि विणा णिरय-तिरिक्ख- मणुस्स- देवगदिणामाणमुदयाणुवलंभादो । तं जहा
रयाणं पंच उदयद्वाणाणि होंति एक्कवीस-पंचवीस-सत्तावीस अठ्ठावीसएगूणती ति | २१ | २५ | २७ | २८ | २१ | तत्थ इङ्गवीसपयडिउदयद्वाणं वुच्चदे | तं जहाणिरयगदि-पंचिदियजादि - तेजा कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस- फास- णिरयगदि
[ २, १, १०.
मनुष्य संज्ञाका व्यवहार और ज्ञान पाया जाता है ।
देवगतिमें जीव देव कैसे होता है ? ॥ १० ॥ यह सूत्र सुगम है ।
देवगति नामप्रकृतिके उदयसे जीव देव होता है ॥ ११ ॥
क्योंकि, देवगति नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई अणिमादिक पर्यायों में परिणत जीवके देव संज्ञाका व्यवहार और ज्ञान पाया जाता है।
शंका- यदि नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव, ये गतियां केवल अपनी एक एक प्रकृतिरूपसे उदयमें आती हों तो नरकगतिके उदयसे नारकी, तिर्यचगतिके उदयसे तिर्यच, मनुष्यगतिके उदयसे मनुष्य और देवगतिके उदयसे देव होता है, ऐसा कहना उचित है। किन्तु अन्य भी तो प्रकृतियां वहां उदयमें आती हैं जिनके विना नरक, तिर्यच, मनुष्य और देवगति नामकर्मोंका उदय पाया ही नहीं जाता ? वह इस प्रकार है
नारकी जीवोंके पांच उदयस्थान हैं
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इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस, अठ्ठाईस और उनतीस प्रकृतियों सम्बन्धी २१ । २५ २७ । २८ । २९ । इनमें इक्कीस प्रकृतियोंके उदयस्थानको कहते हैं । वह इस प्रकार हैनरकगति', पंचेन्द्रियजाति', तैजस' और कार्मण शरीर", वर्ण', गन्ध', रस,
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