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सम्यग्ज्ञानन्द्रिका पीठिका
[ ५७ अब इहां केतेइक संज्ञाविशेष कहिए है । संकलन विर्षे जोडने योग्य राशि का नाम धन है। मूलराशि की तिस धन करि अधिक कहिए । जैसे पांच अधिक कोटि वा जीवराश्यादिक करि अधिक पुद्गल इत्यादिक जानने ।
बहुरि ब्यवकलन विर्षे घटावने योग्य राशि का नाम ऋण है । मूलराशि कौं तिस ऋण करि हीन वा न्यून वा शोधित वा स्फोटित इत्यादि कहिए । जैसे पांच करि हीन कोटि वा त्रसराशि हीन संसारी इत्यादि जानने । कहीं मूलराशि का नाम धन भी कहिए है।
बहुरि गरणकार विर्षे जाकौं मुगिए, ताका नाम गुण्य कहिए । जाकरि गुरिगए, ताका नाम गुणकार वा गुणक कहिए ।
मुण्यराशि कौं गुणकार करि गुरिणत वा हत वा अभ्यस्त वा घ्नत इत्यादि कहिए । जैसे पंचगुरिणत लक्ष वा असंख्यात करि गुणित लोक कहिए । कहीं गुणकार प्रसारण गुण्य कहिए । जैसे पांच गुणा वीस कौं पांच वीसी कहिए वा असंख्यातगुरगा लोक • असंख्यातलोक कहिए इत्यादिक जानने । गुनने का नाम गुणन का हनन वा घात इत्यादि कहिए है।
___ बहुरि भागहार विर्षे जाकौं भाग दीजिए ताका नाम भाज्य वा हार्य इत्यादि है । पर जाका भाग दीजिए ताका नरम भागहार वा हार वा भाजक इत्यादि है । भाज्य राशि कू भागहार करि भाजित भक्त वा हत वा खंडित इत्यादि कहिए। जैसे पांच करि भाजित कोटि वा असंख्यात करि भाजित पल्य इत्यादिक जानने । भागहार का भाग देइ एक भाग ग्रहण करना होइ, तहां तेथवां भाग वा एक भाग कहिये। जैसे वीस का चौथा भाग, बा पल्य का असंख्यातवा भाग वा असंख्यातक भाग इत्यादि जानना।
बहुरि एक भाग विना अवशेष भाग ग्रहण करने होई तहां बहुभाग कहिए । जैसे वीस के च्यारि बहुभाग वा पल्य का असंख्यात बहुभाग इत्यादि जानने ।
बहुरि वर्ग का नाम कृति भी है । बहुरि वर्गमूल का नाम कृतिमल वा मूल दा पद वा प्रथम मूल भी है । बहुरि प्रथम मूल के मूल कौं द्वितीय मूल कहिए । द्वितीय मूल के मूल की तृतीय मूल कहिए । असें चतुर्थादि मूल जानने । जैसे