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प्रश्नोत्तर पिस्तालीसमो
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सम
હત, અને નિયુક્તિકારે (પાંચ પાંચ દિવસના) દશ પંચક ન કહ્યા હેત તે ભાદરે યા શ્રાવણ વધતાં (તપાઓની માન્યતાઓ) તે માસને करनी, और एक महिना वीस दिनके अन्दर संवत्सरी पडिक्कमनी कल्पती है परन्तु उपरांत नहीं कल्पती है, अंदर पडिक्कमने वाले तो आराधक हैं उपरांत पडिक्कमने वाले विराधक हैं, ऐसे कहा है, तो विचार करो कि-जैन पंचांग व्यच्छेद हुए है, जिससे पंचमीके सायंकालको संवत्सरी प्रतिक्रमण करते समय पंचमी है कि छ? हो गई है ? तिसकी यथा स्थिती खबर नहीं पडती है, और जो छठमें प्रतिक्रमण करिये तो पूर्वोक्त जिनाज्ञाका लोप होता है, इस वास्ते उस कार्यमें बाधकका संभव है, परन्तु चौथकी सायंको प्रतिक्रमणके समय पंचमी हो जावे तो किसी प्रकारका भी बाधक नहीं है, इस वास्ते पूर्वाचार्यों ने पूर्वोक्त चौथकी संवत्सरी करनेकी शुद्ध रीति प्रवर्तन करी है सो सत्य ही है, परन्तु ढूंढीये जो चौथ के दिन सन्ध्याको पंचमी लगती होवे तो उसी दिन अर्थात् चौथको संवत्सरी करते हैं, न तो किसी सूत्रके पाठ से करते हैं और न युगप्रधानकी आज्ञासे करते हैं, किन्तु केवल स्वमति कल्पना से करते है"
(सम्यक्त्वशल्योद्धार चौथी आवृत्ति, पान १५८ ) જ્યારે શાસ્ત્રોમાં ક્યાંએ વિધિવાદથી પજુસણ માટે ભાવે કહ્યો જ નથી તે પછી પહેલા ભાદ્રવાને કે બીજા શ્રાવણને વિચારે શું કરવાને ? એટલે પચાસ દિવસ જ્યાં પૂર્ણ થાય ત્યાં, ગમે તે પહેલે ભાદરવો હોય અને ગમે તે બીજે શ્રાવણ હોય, પજુસણ કરવા શાસ્ત્રસંમત છે.
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