Book Title: Prashnottar Chatvarinshat Shatak
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Paydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund
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प्रश्नोत्तर चत्वारिंशन्शनक (તપ ખરર ભેદ ગ્રંથ ૧ બેલ ૧૩૯, ગ્રંથ ર લ ૮૨ )
१३६ प्रश्न-खरतर श्रीमहावीरनइ जन्मनइ अधिकारि गुली अणावइ छइ. ते चडावा करी ल्यइ पुरिण छ३, ते पूछिबउ छइ ?
ભાષા:-શ્રી મહાવીર પ્રભુના જન્મ વાંચનના પ્રસંગે ખરતરને ગળી અણાવે છે અને તે ચઢાવો કરીને લિએ પણ છે, તે પૂછવાનું છે?
तत्रार्थे - तपांरी वडी पोसालि तथा तपांनी लहुडी पोमालि हिवणांई महावीरनइ जन्मि परम्परा अइला (?) गुली वधारी लिवरावइ छइ, परं ऋषिमतीए नवइ गच्छि मांडनां ते छांडी, जिम नागोरीतपाना पोमालीया महातमानइ जन्मइ गुली लीजइ छइ, अनइ पासचंदइ नवी प्ररूपणा करतां गुली निषेधी छइ तिम इहां पिण आपमतीपणउ दीसइ छइ, विचारी जोज्यो, वली गुलीनी परि ऋषिमतीयांनइ पाखीयइ चउमासइ संवच्छरीयइ अजियसंता माहोमांहि चडावउ करी वेचाइ छइ, महारागद्वेषना मूल जाणीयइ छइ, परं कियईईवती ते वात मिटती नथी, यतिनइ एहवइ ठामि मौन करी रहिवउ घटइ, वली विचारिज्यो, तथा तपां ऋषिमतीयांनइ कल्पपोथाना गतीजगा न थाता, हिवइ देखादेखी कल्पपोथाना रातीजगा ( करिवा लागा छइ, वली) कल्पपोथा घर थकी गाजावाजा करी नाणता, हिवइ तेइ थाइ छइ, तपारइ राति कियईई महातमानी पोसालि दीवा न कीजता, हिवणां गति उपासरामांहि दीवा कीजइ छइ, श्रावक जे छइ ते पुणि नाीया बलदनी परि कांइ कही सकता नथी, ए कलिकालना दोष, प्रवृत्ति दोष कियइवतइ वार्यो न जास्यइ, जाते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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