Book Title: Prashnottar Chatvarinshat Shatak
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Paydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund
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प्रश्नोत्तर एकसोचाळीसमो
४०५ सूरि आरण्यक थया तेहना शिष्य (श्रीजिनेश्वरसूरि तथा श्रीबुद्धि सागरसूरि शिष्य) श्रीअभय देवसूरि पुणि आरण्यक थयाजि जाणिवा, पछी श्रीअणहिल्लवाडइ पाटणमांहि पंचारसइ पाडइ मठपतियां साथि १०८० संवच्छरइ श्रीदुर्लभगजा समक्ष श्रीसुविहित यतिना आचारनी माहोमांहि शास्त्रसंमत विचारणा करता यति यांनइ चैत्यवास निषेधीनइ श्रीजिनेश्वरसूरिजीए वसतिवास थाप्य उ, श्रीदुर्लभराजा संतोषाणा, पछी यति राज समक्ष वसतिवासी थया, चैत्यवासपणउ राजसमक्ष निषेधाणउ, राजाअई श्रीजिनेश्वरसूरिजीनई क्रिया आचार करीवा थकी (खरतर) अति
आकरा कही वखाण्या, पछी लोके पुणि श्रीगुरुजीनइ खरतर बोलाया, मठपतियांनइ कुंला कहाणा, इम प्रवाद सांभलीयइ छ।।
पछइ श्रीजिनेश्वरसूरिनइ बीजे सगले गच्छवासीए वसतिपासी सुविहित खरतर एहवइ बिरुदई करी वोलाया, ते भणी बीजां गच्छवासीयांना कह्या श्रीखरतर बिरुद श्रीअभयदेवसूरिजीए नवांगीवृत्ति करतां न लिख्या, परं बीजे गच्छवासीए गच्छना प्रभाविक श्रीआचार्यांनी गणनामांहि विशेषपणइ श्रीखरतरगच्छ वखाण्या, वली श्रीजगच्चन्द्रसूरि विशिष्ट तपोविशेषइ करी लोकांमांहि तपागच्छनउ नाम बिरुद लाघउ, परं श्रीदेवेन्द्राचार्य नवा ग्रन्थ करतां श्रीचित्रावालगच्छना नाम प्राण्या, पुणि लोकांना कह्या तपा नाम ग्रन्थांमांहि लिख्या नहीं, पछी तरतर (?) तुम्हारइ तपागच्छ अम्हारइ श्रीखरतरगच्छ कहाणा, तिहां पहिलोके तपांने गच्छवासीए भापणा २ प्रन्यांमांहिं नाम लेइ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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