Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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योगोपयोगमार्गणा : गाथा ३
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इस बन्ध के हेतुओं-मिथ्यात्वादि को बन्धहेतु कहते हैं। इनका विचार चौथे बंधहेतुद्वार में किया जायेगा।
बन्धविधि-पूर्वोक्त स्वरूप वाले बंध के प्रकृतिबंध आदि प्रकारों को बन्धविधि कहते हैं। इनका विचार बन्धविधि नामक पांचवें द्वार में किया जायेगा। ___ इस प्रकार से इन पांच द्वारों का संक्षेप में स्वरूप और उनमें किये जाने वाले वर्णन की रूपरेखा जानना चाहिये।
अब यथाक्रम से उनका विस्तार से विवेचन करते हैं।
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