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पंचसंग्रह (१) और तथाविध योग्यता का अभाव होने से विभंगज्ञान यह आठ उपयोग भी न पाये जाने से मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन यह तीन ही उपयोग होते हैं ।
'चउ विगले'-चतुरिन्द्रिय और उपलक्षण से असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में चक्षु इन्द्रिय होने से एकेन्द्रिय मार्गणा में पाये जाने वाले मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान, अचक्षुदर्शन के साथ चक्षुदर्शन को मिलाने से चार उपयोग पाये जाते हैं । चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सम्यक्त्व न होने से सम्यक्त्व सहचारी मति, श्रुत, अवधि, मनपर्याय और केवल ये पांच ज्ञान तथा अवधि व केवलदर्शन और तथाविध योग्यता न होने से विभंगज्ञान भी, इस प्रकार आठ उपयोग न पाये जाने से चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में अज्ञानद्विक-मति-अज्ञान, श्रुतअज्ञान और दर्शनद्विक-अचक्षुदर्शन, चक्षुदर्शन कुल मिलाकर चार उपयोग होते हैं। ___'तस सगले बार'-त्रसकाय और सकल-सकलेन्द्रिय-पंचेन्द्रिय मार्गणा में सभी बारह उपयोग होते हैं। त्रस और पंचेन्द्रिय जीवों में मनुष्य भी हैं । अतः मनुष्यगति के समान सभी बारह उपयोग पाये जाने के कारण को यहाँ भी समझ लेना चाहिए तथा इसी प्रकार से 'जोए वेए........' इत्यादि अर्थात् मन, वचन, काय योग, स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद, संज्ञी, आहारक, भव्य और शुक्ललेश्या इन दस मार्गणाओं में भी बारह उपयोग पाये जाते हैं। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है___मन, वचन, काय यह तीन योग, शुक्ललेश्या और आहारकत्व यह पांच मार्गणायें तेरहवें गुणस्थान तक पाई जाती हैं। सयोगिकेवली भगवान मनोयोग का व्यापार मन द्वारा प्रश्नोत्तर के समय, वचनयोग का व्यापार देशना के समय और औदारिक काययोग का व्यापार बिहार आदि शारीरिक क्रियाओं के समय करते हैं। इसलिए मनोयोग आदि तीनों योग तेरहवें गुणस्थान तक माने हैं। शुक्ललेश्या
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