Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 294
________________ योगोपयोगमार्गणा-अधिकार : परिशिष्ट २ कुल सात योग होते हैं। अयोगिकेवलीगुणस्थान में योग का अभाव होने से कोई भी योग नहीं होता है । इस प्रकार से गुणस्थानों में योगों को जानना चाहिये। अब उपयोग का निर्देश करते हैं। गुणस्थानों में उपयोग--- मिथ्यात्व और सासादन इन दो गुणस्थानों में मति-अज्ञान आदि अज्ञानत्रिक और चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन ये पांच उपयोग पाये जाते हैं। अविरतसम्यग्दृष्टि और देशविरत इन दो गुणस्थानों में आदि के तीन ज्ञान-मतिश्रुत-अवधि ज्ञान और आदि के तीन दर्शन-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये छह उपयोग होते हैं। तीसरे मिश्रगणस्थान में भी यही छह उपयोग हैं, किन्तु अज्ञान से मिश्रित जानना चाहिये । छठे प्रमत्तविरत से लेकर बारहवें क्षीणमोह पर्यन्त सात गुणस्थानों में आदि के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनपर्यायज्ञान और चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन एवं अवधिदर्शन इस प्रकार कुल सात उपयोग होते हैं। सयोगिकेवली और अयोगिकेवली इन तेरहवें चौदहवें गुण स्थान में केवलज्ञान और केवलदर्शन ये दो उपयोग पाये जाते हैं। गुणस्थानों में प्राप्त उपयोगों का कथन उक्त प्रकार से जानना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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