Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 299
________________ ५८ पंचसंग्रह ( १ ) कषाय तक के बारह गुणस्थान पाये जाते हैं । वैक्रियकाययोग में मिथ्यात्व आदि चार गुणस्थान होते हैं तथा वैक्रियमिश्रकाय में मिश्रगुणस्थान को छोड़कर आदि के तीन गुणस्थान पाये जाते हैं । उनके नाम हैं - मिथ्यात्व, सासादन और अविरतसम्यग्दृष्टि । आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग में एक छठा प्रमत्तसंयत गुणस्थान होता है । औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग में मिथ्यात्व, सासादन, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली ये चार गुणस्थान होते हैं । वेदमार्गणा की अपेक्षा तीनों वेदों में तथा कषायमार्गणा की अपेक्षा क्रोध, मान और माया इन तीन कषायों में मिथ्यात्व आदि अनिवृत्तिबादर पर्यन्त नौ गुणस्थान तथा लोभकषाय में आदि के मिथ्यात्व से लेकर सूक्ष्मसम्पराय पर्यन्त दस गुणस्थान पाये जाते हैं । ज्ञानमार्गणा की अपेक्षा अज्ञानत्रिक अर्थात् मति अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और विभंगज्ञान वाले जीवों के आदि के दो गुणस्थान होते हैं । ज्ञानत्रिक - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान वाले जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर नौ गुणस्थान अर्थात् चौथे से बारहवें तक के नौ गुणस्थान होते हैं । मनपर्यायज्ञान वाले जीवों के छठे प्रमत्तसंयत को आदि लेकर बारहवें क्षीणमोह पर्यन्त सात गुणस्थान होते हैं । केवलज्ञान और केवलदर्शन मार्गणा वाले जीवों के अन्तिम दो सयोगिकेवली, अयोगिकेवली गुणस्थान होते हैं । संयममार्गणा की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयम वाले जीवों के प्रमत्तसंयत आदि चार गुणस्थान होते हैं । यथाख्यातसंयम वाले जीवों के उपशांतमोह आदि चार गुणस्थान होते हैं तथा सूक्ष्मसम्परायसंयम वाले जीवों के एक सूक्ष्मसम्पराय नामक दसवां और देशसंयम वालों के देशविरत नामक पांचवां गुणस्थान होता है । असंयत जीवों के मिथ्यात्व आदि चार गुणस्थान होते हैं तथा परिहारविशुद्धिसंयम वाले के प्रमत्तसंयत आदि दो गुणस्थान होते हैं । दर्शनमार्गणा की अपेक्षा चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन वाले जीवों के मिथ्यात्व आदि क्षीणमोह पर्यन्त बारह गुणस्थान होते हैं तथा अवधिदर्शन वाले जीवों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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