Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

Previous | Next

Page 300
________________ ५६ योगोपयोगमार्गणा - अधिकार : परिशिष्ट २ असं सम्यग्दृष्टि को आदि लेकर क्षीणमोह पर्यन्त नौ गुणस्थान पाये जाते हैं । केवलदर्शनमार्गणा के लिये पूर्व में संकेत किया जा चुका है । श्यामार्गणा की अपेक्षा कृष्णादि तीन लेश्या वाले जीवों के मिथ्यात्व आदि चार गुणस्थान, शुक्ललेश्या वालों के मिथ्यात्व आदि तेरह गुणस्थान तथा तेज और पद्मलेश्या वालों के मिथ्यात्व से अप्रमत्तसंयत पर्यन्त सात गुणस्थान होते हैं । भव्यमार्गणा की अपेक्षा भव्य जीवों के मिथ्यात्व से लेकर क्षीणमोह पर्यन्त बारह गुणस्थान होते हैं । क्योंकि सयोगिकेवली और अयोगिकेवली को भव्यव्यपदेश नहीं होता है इसीलिये भव्य जीवों के आदि के बारह गुणस्थान माने जाते हैं | अभव्य जीवों के तो एकमात्र मिथ्यात्वगुणस्थान होता है । सम्यक्त्वमार्गणा की अपेक्षा उपशम सम्यक्त्वी जीवों के चौथे अविरत सम्यक्त्व से लेकर उपशांतमोह पर्यन्त आठ गुणस्थान तथा क्षायिक सम्यक्त्व वाले जीवों के अविरतसम्यक्त्व से लेकर अयोगिकेवली पर्यन्त ग्यारह गुणस्थान और क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी जीवों के अविरतसम्यक्त्व आदि चार गुणस्थान होते हैं । मिथ्यात्वादित्रिक में उस उस नाम वाला एक-एक ही गुणस्थान होता है । अर्थात् मिथ्यादृष्टियों में पहला मिथ्यात्वगुणस्थान, सासादनसम्यग्दृष्टियों में सासादन नामक दूसरा गुणस्थान और सम्यग्मिथ्यादृष्टियों में सम्यग्मिथ्यात्व नामक तीसरा गुणस्थान होता है । संज्ञीमार्गणा की अपेक्षा संज्ञी जीवों के मिथ्यात्वादि क्षीणकषायान्त बारह गुणस्थान तथा असंज्ञी जीवों में मिथ्यात्वादि दो गुणस्थान होते हैं । आहारमार्गणा की अपेक्षा आहारक जीवों के मिथ्यात्वादि सयोगिकेवली पर्यन्त तेरह गुणस्थान तथा अनाहारक जीवों के मिथ्यात्व, सासादन, अविरत - सम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली, अयोगिकेवली ये पांच गुणस्थान जानना चाहिये । इस प्रकार मार्गणाओं में गुणस्थानों का विधान है । 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312