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दिगम्बर साहित्य में निर्दिष्ट मार्गणास्थानों में
गणस्थान
मार्गणास्थानों में गुणस्थानों की प्राप्ति का विवरण इस प्रकार है
गतिमार्गणा की अपेक्षा नरकगति और देवगति में पहले मिथ्यात्व से चौथे अविरतसम्यग्दृष्टि पर्यन्त चार गुणस्थान, तियंचगति में मिथ्यात्वादि देशविरत पर्यन्त पांच गुणस्थान तथा मनुष्यगति में सभी चौदह गुणस्थान होते हैं ।
इन्द्रियमार्गणा की अपेक्षा एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं । यहाँ इतना विशेष है कि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में पर्याप्तकाल में एक मिथ्यात्व गुणस्थान तो सदैव होता है तथा उक्त जीवों में सासादनगुणस्थान किसी-किसी को निवृत्यपर्याप्तक दशा में सम्भव है । इसीलिये एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में दो गुणस्थान माने जाते हैं। पंचेन्द्रिय में सभी चौदह गुणस्थान होते हैं ।
कायमार्गणा की अपेक्षा पृथ्वीकाय, जलकाय और वनस्पतिकाय जीवों में आदि के दो गुणस्थान होते हैं तथा तेजस्काय और वायुकाय के जीवों में मिथ्यात्वगुणस्थान होता है। क्योंकि सासादनस्थ जीव मरकर तेज और वायु काय जीवों में उत्पन्न नहीं होते हैं तथा त्रसकायिक जीवों में सभी चौदह गुणस्थान होते हैं।
योगमार्गणा की अपेक्षा प्रथम और अन्तिम (सत्य और असत्यामृषा) मनोयोगद्वय और वचनयोगद्वय तथा औदारिककाययोग में सयोगिकेवली पर्यन्त तेरह गुणस्थान होते हैं। मध्य के दोनों मनोयोगों और वचनयोगों में क्षीण
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