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१२ दिगम्बर साहित्य में गुणस्थानों में योग-उपयोग
-- निर्देश
- गुणस्थानों के चौदह नाम दोनों परम्पराओं में समान है। दिगम्बर परंपरानुसार उनमें प्राप्त योगों का विवेचन इस प्रकार है
तीन में तेरह-तेरह, एक में दस, सात में नौ, एक में ग्यारह, एक में सात योग क्रमशः जानना चाहिये । अयोगिकेवलीगुणस्थान में कोई भी योग नहीं पाया जाता है। पृथक-पृथक गुणस्थानों में प्राप्त योगों का निरूपण नीचे लिखे अनुसार है
मिथ्यात्व, सासादन और अविरतसम्यग्दृष्टि इन तीन गुणस्थानों में आहारक द्विक के बिना शेष तेरह योग होते हैं ।
तीसरे मिश्रगुणस्थान में औदारिक-वैक्रिय-काययोगद्वय तथा सत्य, असत्य, उभय, अनुभय ये चारों मनोयोग और यही चारों वचनयोग, कुल मिलाकर दस योग होते हैं।
इन दस योगों में से वैक्रियकाययोग को छोड़कर शेष नौ योग पांचवें देशविरत तथा अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसंपराय, उपशांतमोह और क्षीणमोह इन सात गुणस्थानों में होते हैं। जिनके नाम हैंऔदारिककाययोग, मनोयोगचतुष्टय, वचनयोगचतुष्टय ।
छठे प्रमत्तसंयतगुणस्थान में इन योगों के साथ आहारकढिक को मिलाकर कुल ग्यारह योग पाये जाते हैं ।
सयोगिकेवलीगुणस्थान में सत्य, असत्यामृषा मनोयोगद्वय, सत्य, असत्यामृषा वचनयोगद्वय तथा औदारिकद्विक एवं कार्मण ये तीन काययोग इस प्रकार
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