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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ३१
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और विभंगज्ञानी के दर्शन में अनाकारता का अंश समान है, इसीलिये विभंगज्ञानी के दर्शन का विभंगदर्शन ऐसा अलग नाम न रखकर एक अवधिदर्शन रखा है। ___ इसी सिद्धान्त पक्ष को स्वीकार करके यहाँ अवधिदर्शन में आदि के बारह गुणस्थान माने हैं । लेकिन कुछ कार्मग्रंथिक आचार्य पहले तीन गुणस्थानों में अवधिदर्शन नहीं मानकर चौथे से बारहवें तक नौ गुणस्थानों में और कुछ विद्वान तीसरे से बारहवें तक दस गुणस्थानों मानते हैं । इस मतभिन्नता का कारण है-पहले तीन गुणस्थानों में और आदि के दो गुणस्थानों में अज्ञान मानना । यद्यपि ये दोनों प्रकार के कार्मग्रंथिक आचार्य अवधिज्ञान से अवधिदर्शन को अलग मानते हैं परन्तु विभंगज्ञान से अवधिदर्शन का उपयोग अलग नहीं मानते हैं। इसके लिए उनकी युक्ति है कि जैसे विभंगज्ञान से विषय का यथार्थ ज्ञान नहीं होता है, उसी प्रकार मिथ्यात्वयुक्त अवधिदर्शन से भी नहीं होता है । इस अभेद विवक्षा के कारण पहले मत के अनुसार चौथे से बारह तक और दूसरे मत के अनुसार तीसरे से बारह गुणस्थान तक अवधिदर्शन माना जाता है।
मिश्रसम्यक्त्वमार्गणा और देशविरतचारित्रमार्गणा में अपनेअपने नाम वाला एक-एक गुणस्थान है। क्योंकि तीसरा गुणस्थान मिश्रदृष्टिरूप और पाँचवाँ देशविरतिरूप है । अविरति मार्गणा में आदि के चार गुणस्थान--मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र और अविरत
चौथे से लेकर बारहवें तक नौ गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानने का पक्ष प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ गाथा २६ तथा सर्वार्थसिद्धि टीका में निर्दिष्ट है'अवधिदर्शने असंयतसम्यग्दृष्ट्यादीन क्षीणकषायन्तानि ।' तथा तीसरे से बारहवें तक दस गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानने का पक्ष प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ गाथा ७०-७१ में बताया है। गोम्मटसार जीवकांड में भी दोनों पक्षों का संकेत गाथा ६६१ और ७०५ में है।
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