Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह (१)
के संज्ञी, असंज्ञी दो भेद कर दिये जायें तो चार भेद; एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय की अपेक्षा पांच भेद; पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस इस प्रकार काय की अपेक्षा छह भेद; यदि उक्त छह भेदों में त्रस के सकल और विकल इस तरह दो भेद करके मिला दिये जायें तो सात भेद । इन सात भेदों में सकल के संज्ञी-असंज्ञी भेद करके मिलाने पर आठ भेद; सकल-विकल त्रस के द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय इस प्रकार चार भेद करके मिलाने पर नौ भेद और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय इस तरह पांच भेद करके मिलाने पर दस भेद होते हैं ।
पूर्वोक्त पांच स्थावरों के बादर-सूक्ष्म की अपेक्षा दस भेद हुए । इनमें त्रस सामान्य का एक भेद मिलाने पर ग्यारह भेद तथा इन्हीं पांच स्थावर युगलों में त्रस के विकलेन्द्रिय, सकलेन्द्रिय दो भेद मिलाने से बारह भेद और त्रस के विकलेन्द्रिय और संज्ञी, असंज्ञी पंचेन्द्रिय इस प्रकार तीन भेद मिलाने से तेरह भेद और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ये चार भेद मिलाने से चौदह भेद तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और संज्ञी, असंज्ञी पंचेन्द्रिय ये पांच मिलाने से पन्द्रह भेद होते हैं ।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति के नित्यनिगोद, इतरनिगोद इन छह के सूक्ष्म, बादर की अपेक्षा बारह भेद और प्रत्येक वनस्पति, इन तेरह में त्रस के विकलेन्द्रिय और संज्ञी-असंज्ञी पंचेन्द्रिय, इन तीन भेदों को मिलाने से सोलह और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, इन चार भेदों को मिलाने से सत्रह और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी-संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन पांच भेदों को मिलाने से अठारह भेद होते हैं ।
पृथ्वी, अप, तेज, वायु और नित्यनिगोद और इतरगतिनिगोद वनस्पति, इन छह भेदों के बादर-सूक्ष्म की अपेक्षा बारह भेद तथा प्रत्येक वनस्पति के प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित दो भेद, कुल चौदह भेदों में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन पांच भेदों को मिलाने से जीवस्थान के उन्नीस भेद होते हैं ।
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