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योगोपयोगमार्गणा-अधिकार : परिशिष्ट २ गुण सम्यक्त्व गुण व्यक्त होता है । मिथ्यात्व रूप महान रोग हट जाने से जीव को ऐसा आनन्द आता है, जैसे कोई पुराने एवं भयंकर रोग से स्वस्थ होने पर अनुभव करता है। ____ औपशमिक सम्यक्त्व की स्थिति अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि इसके बाद मिथ्यात्वमोहनीय के वे पुद्गल जिन्हें अन्तरकरण के समय अन्तर्मुहर्त के बाद उदय आने वाला बनाया है, उदय में आ जाते हैं या क्षयोपशम रूप में परिणत कर दिये जाते हैं। ____ औपशमिक सम्यक्त्व के काल को उपशांताद्धा कहते हैं। उपशांताद्धा के पूर्व अर्थात् अन्तरकरण के समय में जीव अपने विशुद्ध परिणाम से द्वितीय स्थितिगत मिथ्यात्व के तीन पुञ्ज करता है—(१) सर्वविशुद्ध (सम्यक्त्व रूप), (२) अर्धविशुद्ध (सम्यमिथ्यात्व रूप) और (३) अशुद्ध (मिथ्यात्व रूप)।
औपशमिक सम्यक्त्व का समय पूर्ण होने पर जीव क परिणामानुसार उक्त तीन पुञ्जों में से कोई एक अवश्य उदय में आ जाता है। यदि परिणाम शुद्ध हैं तो सम्यक्त्व रूप सर्वविशुद्ध पुञ्ज का उदय होता है। जिससे सम्यक्त्व का घात नहीं होता है और उस समय प्रगट होने वाले सम्यक्त्व को क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। जीव के परिणाम अर्धविशुद्ध होने पर दूसरा अर्धविशुद्ध पुञ्ज का उदय होता है, जिससे जीव मिश्रदृष्टि कहलाता है और परिणामों के अशुद्ध होने पर अशुद्ध पुञ्ज का उर होता है, तब जीव मिथ्यादृष्टि हो जाता है।
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