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योगोपयोगमार्गणा-अधिकार : परिशिष्ट २
ज्ञानमार्गणा की अपेक्षा मति, श्रुत और अवधिज्ञानी जीवों के सभी पन्द्रह योग होते हैं । मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी जीवों में आहारकद्विक को छोड़कर शेष तेरह योग तथा विभंगज्ञानी जीवों के अपर्याप्तकाल सम्बन्धी औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र और कार्मण काययोग तथा आहारकद्विक इन पांच योगों को छोड़कर शेष दस योग होते हैं । केवलद्विक अर्थात् केवलज्ञान और केवलदर्शन वाले जीवों के सत्यमनोयोग, असत्यामृषामनोयोग, सत्यवचनयोग, असत्यामृषावचनयोग, औदारिकद्विक और कार्मण काययोग ये सात योग होते हैं। ___ मनपर्यायज्ञान तथा संयम मार्गणा के भेद सूक्ष्मसम्परायसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम और संयमासंयम (देशविरति) वाले जीवों के मनोयोगचतुष्क, वचनयोगचतुष्क और औदारिककाययोग ये नौ योग होते हैं । ____संयममार्गणा की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयम वाले जीवों के चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, आहारकद्विक और औदारिक काययोग ये ग्यारह योग तथा यथाख्यातसंयम बाले जीवों के चारों मनोयोग, चारों वचन योग, औदारिकद्विक और कार्मण काययोग ये ग्यारह योग और असंयमी जीवों के आहारकद्विक को छोड़कर शेष तेरह योग होते हैं । __ लेश्यामार्गणा की अपेक्षा कृष्णादि तीन लेश्या वालों के आहारकद्विक को छोड़कर शेष तेरह योग होते हैं । तेजोलेश्या आदि तीन लेश्या वालों के सभी पन्द्रह योग पाये जाते हैं ।
दर्शनमार्गणा की अपेक्षा चक्षुदर्शन वाले जीवों में अपर्याप्त काल सम्बन्धी तीनों मिश्रयोगों (औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र, कार्मण) को छोड़कर शेष बारह योग पाये जाते हैं । अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन वाले जीवों में सभी योग होते हैं।
भव्यमार्गणा की अपेक्षा अभव्य जीवों के आहार द्विक को छोड़कर शेष तेरह योग तथा भव्य जीवों के सभी योग होते हैं ।
सम्यक्त्वमार्गणा की अपेक्षा उपशमसम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों के आहारकद्विक को छोड़कर शेष तेरह योग जानना चाहिये।
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