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दिगम्बर कर्मसाहित्य में मार्गणास्थानों में उपयोग
विचार
मतिज्ञान आदि उपयोग के बारह भेद गति आदि के क्रम से प्रत्येक मार्गणा के अवान्तर भेदों में इस प्रकार है
गतिमार्गणा की अपेक्षा नरक, तिर्यंच और देव गति में केवलद्विक और मनपर्याय ज्ञान इन तीन को छोड़कर शेष नौ उपयोग होते हैं । मनुष्यगति में सभी बारह उपयोग पाये जाते हैं । ___ इन्द्रियमार्गणा की अपेक्षा एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीवों में अचक्षुदर्शन और मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान ये तीन तथा चतुरिन्द्रिय जीवों में चक्षुदर्शन सहित उक्त तीनों उपयोग, इस तरह कुल चार उपयोग पाये जाते हैं । पंचेन्द्रिय जीवों में सभी उपयोग होते हैं। लेकिन इतना विशेष है कि जिन भगवान में उपचार से पंचेन्द्रियत्व माना है, इस अपेक्षा से बारह उपयोग अन्यथा के वलद्विक को छोड़कर शेष दस उपयोग जानना चाहिये ।
कायमार्गणा की अपेक्षा पृथ्वी आदि पांचों स्थावर कायों में अचक्षुदर्शन, मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान ये तीन उपयोग तथा त्रसकाय में सभी उपयोग पाये जाते हैं।
योगमार्गणा की अपेक्षा प्रथम और अन्तिम मनोयोग और वचनयोग और औदारिक काययोग में सभी उपयोग होते हैं। मध्य के दो मनोयोग (असत्य, सत्यासत्य) और दो वचनयोग (असत्य, सत्यासत्य) में केवलद्विक को छोड़कर शेष दस उपयोग तथा औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणक.ययोग में मनपर्यायज्ञान, विभंगज्ञान और चक्षुदर्शन इन तीन को छोड़कर शेष नौ उपयोग
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