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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : परिशिष्ट २
जीवस्थानों के सत्तावन भेद
पृथ्वीकाय
जलकाय
तेजस्काय
द्वीन्द्रिय
त्रीन्द्रिय
चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय
संज्ञी पंचेन्द्रिय
X २ बादर - सूक्ष्म x ३ लब्ध्यपर्याप्त - निवृत्यपर्याप्त
× २
× २
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× ३
X ३
× ३
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X ३
× २
वायुकाय साधारण नित्यनिगोद वनस्पति × २ साधारण इतरगतिनिगोद वनस्पति x २ × ३ प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति ३ लब्ध्यपर्याप्त निवृत्यपर्याप्त पर्याप्त = ३ अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति X ३
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× ३
x ३
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स्थान की अपेक्षा जीवस्थानों के भेद---
जीवस्थानों के भेदों का पूर्वोक्त एक प्रकार है । अब यदि दूसरे प्रकार से जीवस्थानों के भेदों का विचार किया जाये तो स्थान की अपेक्षा इस प्रकार भी किया जा सकता है ।
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सामान्य से जीवस्थान का एक भेद है । क्योंकि जीव कहने से जीवमात्र का ग्रहण हो जाता है । त्रस और स्थावर की अपेक्षा दो भेद; एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, सकलेन्द्रिय ( पंचेन्द्रिय) की अपेक्षा तीन भेद; यदि इनमें पंचेन्द्रिय
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