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सामायिक आदि पांच चारित्रों का परिचय
संयम और चारित्र ये दोनों समानार्थक शब्द हैं । संयम अर्थात् त्यागसम्यक् प्रकार से विरमण, श्रद्धा और ज्ञानपूर्वक सर्वथा पापव्यापार का त्याग करना संयम अथवा चारित्र कहलाता है । वह पांच प्रकार का है
(१) सामायिक चारित्र, (२) छेदोपस्थापनीय चारित्र, (३) परिहारविशुद्धि चारित्र, (४) सूक्ष्मसम्पराय चारित्र, (५) यथाख्यात चारित्र ।
इन पांचों चारित्र भेदों का संक्षेप में परिचय इस प्रकार है
सामायिक - सम आय अर्थात रागद्वेष की रहितता के द्वारा आत्मस्वरूप में प्रवृत्ति करना, विभावदशा से स्वभाव में आना-अन्तर्मुखी दृष्टि का होना । अतएव समाय के द्वारा, रागद्वोष की रहितता द्वारा हुआ अथवा समाय होने पर होने वाला चारित्र सामायिक चारित्र है । अथवा सम् यानि सम्यग्ज्ञानदर्शन और चारित्र की आय अर्थात लाभ को समाय कहते हैं और उसी का नाम सामायिक है । जितने-जितने अंश में आत्मा को सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र प्राप्त हो जाता है, वह सामायिक है। वह सामायिक चारित्र सर्वथा पापव्यापार के त्याग रूप है।
___ इस सामायिक में उपलक्षण से साधुओं की अन्य क्रियाओं का भी समावेश हो जाता है । क्योंकि साधुओं की सभी क्रियायें रागद्वेष का अभाव करने रूप हैं और ये सभी क्रियायें रागद्वेष के अभाव में कारण होने से कारण में कार्य का आरोप करके साधुओं की समस्त क्रियाओं को ही रागद्वेष के अभाव रूप जानना चाहिए।
यद्यपि सभी चारित्र सर्वथा पापव्यापार का त्याग करने में कारण होने से
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