Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 268
________________ योगोपयोगमार्गणा-अधिकार : परिशिष्ट २ छामास्थिक के दो प्रकार हैं-(१) क्षायिक और (२) औपशमिक । इनमें से चारित्रमोहनीय के सर्वथा क्षय से उत्पन्न हुआ क्षायिक यथाख्यातचारित्र बारहवें क्षीणमोहगुणस्थान में और चारित्रमोहनीय के सर्वथा उपशम से जन्य औपशमिक यथाख्यातचारित्र ग्यारहवें उपशांतमोहगुणस्थान में होता है । कैवलिक यथाख्यातचारित्र के भी दो प्रकार हैं--(१) सयोगिकेवलिसम्बन्धी और (२) अयोगिकेवलि-सम्बन्धी । सयोगिकेवलि नामक तेरहवें गुणस्थानवर्ती आत्माओं के चारित्र को सयोगिकेवलि यथाख्यातचारित्र तथा चौदहवें अयोगिकेवलिगुणस्थानवर्ती आत्माओं के चारित्र को अयोगिकेवलि यथाख्यातचारित्र कहते हैं । इस प्रकार से संक्षेप में सामायिक आदि पांच चारित्रों का स्वरूप समझना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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