Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह (१)
करने और उन-उन पुद्गलों का आगमन रुक जाने से अनाहारकत्व है। __ इस प्रकार से मार्गणास्थान भेदों में गुणस्थानों का विधान जानना चाहिये। सरलता से समझने के लिये प्रारूप परिशिष्ट में देखिये।
उक्त प्रकार से योगोपयोगमार्गणा से सम्बन्धित विषयों का वर्णन समाप्त होने पर ग्रंथकार आचार्य ने उपसंहार करने के लिये संकेत दिया है-'भणिया जोगुवयोगाणमग्गणा' अर्थात् योगोपयोमार्गणा अधिकार का तो कथन पूर्ण हुआ अब क्रम-प्राप्त बंधक अधिकार की प्ररूपणा करते हैं--'बंधगे भणिमो' ।
इस प्रकार से योगोपयोमार्गणा अधिकार पूर्ण हुआ।
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