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घोगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ३४
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शब्दार्थ-आहारगेसु–आहारकों में, तेरस-तेरह, पंच-पांच, अणाहारगेसु-अनाहारकों में, वि-भी, भवंति होते हैं, भणिया-कथन किया, जोगुवयोगाण-योगोपयोगों की, मग्गणा--मार्गणा, बंधगे-बंधक जीवों का, भणिमो-वर्णन करूंगा।
गाथार्थ-आहारकों में तेरह और अनाहारकों में पाँच गुणस्थान होते हैं। इस प्रकार से योगोपयोगमार्गणा का कथन किया, अब (कर्म) बंधक जीवों का वर्णन करूगा।
विशेषार्थ-गाथा में अन्तिम मार्गणा आहार के दो भेदों में गुणस्थानों का निर्देश करके अधिकार समाप्ति एवं क्रम-प्राप्त दूसरे बंधक अधिकार को प्रारम्भ करने का संकेत किया है।
आहारमार्गणा के दो भेद हैं--आहारक और अनाहारक । इनमें से आहारक जीवों के अयोगिकेवलिगुणस्थान को छोड़कर शेष पहले मिथ्यात्व से लेकर सयोगिकेवली पर्यन्त तेरह गुणस्थान होते हैं-- 'आहारगेसु तेरस' । क्योंकि अयोगिकेवलिगुणस्थान में किसी प्रकार का आहार ग्रहण नहीं किये जाने से तेरह गुणस्थान ही सम्भव हैं । तथा 'पंच अणाहारगे' अनाहारकमार्गणा में पाँच गुणस्थान हैं। वे इस प्रकार
पहला मिथ्यात्व, दूसरा सासादन, चौथा अविरतसम्यग्दृष्टि और अंतिम दो-अयोगिकेवली, अयोगिकेवली गुणस्थान । इनमें से पहलादूसरा और चौथा गुणस्थान तो विग्रहगति की अनाहारक-कालीन अवस्था की अपेक्षा और तेरहवां गुणस्थान केवलिसमुद्घात के तीसरे-चौथे और पाँचवें समय में होने वाली अनाहारक दशा की अपेक्षा और चौदहवाँ गुणस्थान योगनिरोधजन्य अनाहारकत्व की अपेक्षा जानना चाहिये। चौदहवें गुणस्थान में योग का अभाव हो जाने से औदारिक आदि शरीरों के पोषक पु गलों का ग्रहण न
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