________________
योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा १५
१२१ और ज्ञानत्रिक कुल मिलाकर छह उपयोग पाये जाते हैं । लेकिन देशविरति की अपेक्षा इतनी विशेषता है कि वे अज्ञान से मिश्रित होते हैं । अर्थात् मतिज्ञान मति-अज्ञान से, श्रुतज्ञान श्रुत-अज्ञान से, अवधिज्ञान अवधि-अज्ञान (विभंगज्ञान) से मिश्रित होते हैं। इस मिश्रता का कारण यह है कि यहाँ अर्धविशुद्ध दर्शनमोहनीय पुंज का उदय होने से परिणाम कुछ शुद्ध और कुछ अशुद्ध यानी मिश्ररूप होते हैं । शुद्धि की अपेक्षा मति आदि को ज्ञान और अशुद्धि की अपेक्षा अज्ञान माना जाता है तथा अविरतिमार्गणा में आदि के तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और चक्षुदर्शन आदि तीन दर्शन कुल नौ उपयोग होते हैं।
लेकिन पृथक्-पृथक् सम्यक्त्वी और मिथ्यात्वी की अपेक्षा अविरतिमार्गणा में उपयोग का विचार करें तो सम्यग्दृष्टि अविरतियों को मतिज्ञान आदि तीन ज्ञान और चक्षुदर्शन आदि तीन दर्शन यह छह उपयोग होंगे तथा मिथ्यात्वी अविरतियों में मति-अज्ञान आदि तीन अज्ञान और चक्षु, अचक्षुदर्शन कुल पांच उपयोग माने जायेंगे। .
इस प्रकार से मार्गणाओं में उपयोग का विचार जानना चाहिये ।। सरलता से समझने के लिये मार्गणाओं में संभव योग और उपयोगों का प्रारूप इस प्रकार है---
१ मिश्रगुणस्थान में अवधिदर्शन का विचार करने वाले कार्मग्रंथिक दो पक्ष
हैं। प्रथम पक्ष चौथे आदि नौ गुणस्थानों में अवधिदर्शन मानता है और द्वितीय पक्ष तीसरे गुणस्थान में भी अवधिदर्शन । यहाँ द्वितीय पक्ष को लेकर मिश्रदृष्टि के उपयोगों में अवधिदर्शन को ग्रहण किया है। दिगम्बर कर्मसाहित्य में आगत मार्गणाओं में उपयोग-विचार को परिशिष्ट में देखिये।
२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org