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अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट से देशोन पुद्गलपरावर्तन काल है । सासादनगुणस्थान -- जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से छह आवलिका ।
पंचसंग्रह (१)
मिश्र, क्षीणमोह, अयोगिकेवली गुणस्थान -- इन तीन का जघन्य उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । लेकिन अयोगिकेवली गुणस्थान के लिये इतना विशेष जानना चाहिये कि उसका समय पांच ह्रस्वाक्षर --अ, इ, उ, ऋ, लृ —— उच्चारण प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है ।
अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान - जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट से साधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण ।
देशविरत, सयोंगिकेवली गुणस्थान - जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण ।
प्रमत्तसंयतादि उपशांतमोह पर्यन्त गुणस्थान -- इन छह गुणस्थानों का काल जघन्य से मरण की अपेक्षा एक समय, अन्यथा जघन्यउत्कृष्ट दोनों प्रकार से अन्तर्मुहूर्त है ।
इस प्रकार से गुणस्थानों के इस क्रमारोहण में नर से नारायण होने का विधान अंकित है । अब इनमें प्राप्त योगों का कथन प्रारम्भ करते हैं ।
गुणस्थानों में योग
'जोगाहार दुगूणा ....इत्यादि अर्थात् पूर्व में योग के जो मनोयोग, वचनयोग और काययोग इन तीन मूल भेदों के क्रमशः चार, चार और सात भेदों के नाम बताये हैं, उनमें से यहाँ सर्वप्रथम मिथ्यात्व, सासादन और अविरतसम्यग्दृष्टि-- इन तीन गुणस्थानों में योगों को बताया है कि आहारकद्विक - आहारक और आहारक मिश्र इन दो योगों के बिना शेष तेरह योग होते हैं ।
इन तीनों गुणस्थानों में आहारकद्विक योग न पाये जाने का कारण यह है कि आहारकशरीर और आहारकमिश्र ये दोनों योग चारितसापेक्ष हैं और चौदह पूर्वधर संयत को ही होते हैं, किन्तु
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