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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा २८
१८७ योग्य परिणाम हो सकते हैं । युगलिक तिर्यचों के आदि के चार ही गुणस्थान होते हैं और औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्वों में से किसी भी प्रकार का सम्यक्त्व संभव है और संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यंच में क्षायिक के सिवाय शेष दो सम्यक्त्व और देशविरति तक के पाँच गुणस्थान संभव हैं।
मनुष्यगति में सभी प्रकार के परिणाम संभव होने से सब गुणस्थान पाये जाते हैं-'चोद्दस मणूसे' ।
एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रियत्रिक--द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय इन चार इन्द्रिय मार्गणा के भेदों में युगल-मिथ्यात्व, सासादन यह दो गुणस्थान पाये जाते हैं । इसका कारण यह है कि अज्ञान के कारण तत्वश्रद्धाहीन होने से मिथ्यात्वगुणस्थान तो सामान्यतः इन सभी जीवों में पाया जाता है और सासादनगुणस्थान इनकी अपर्याप्त अवस्था में होता है । क्योंकि एकेन्द्रिय आदि की आयु का बंध हो जाने के बाद जब किसी को औपश मिक सम्यक्त्व होता है तब उसका त्याग करता हुआ सासादनसम्यक्त्व सहित एकेन्द्रिय आदि में जन्म लेता है तो अपर्याप्त अवस्था में कुछ काल के लिए दूसरा सासादनगुणस्थान भी पाया जाता है।'
पंचेन्द्रिय मार्गणा में सभी चौदह गुणस्थान संभव है। क्योंकि पंचेन्द्रियों में मनुष्यों का समावेश होने से, उनमें सभी भाव पाये जाते हैं-'सव्वाणि पणिदिसु हवंति' ।
इस प्रकार गति मार्गणा के चार और इन्द्रियमार्गणा के पांच, कुल नौ भेदों में गुणास्थान बतलाने के बाद अब काय आदि मार्गणाओं में गुणस्थानों का निर्देश करते हैं
१ पर्याप्त नामकर्म के उदय वाले लब्धिपर्याप्त करण-अपर्याप्तकों को करण
अपर्याप्त अवस्था में सासादनगुणस्थान संभव है। लब्धि-अपर्याप्तकों
को मात्र मिथ्यात्वगुणस्थान होता है । Jain Education International
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