Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा १५
११६
अज्ञानत्रिक, अभव्य, सासादन और मिथ्यात्व इन छह मार्गणाओं में केवलद्विक और मतिज्ञानादि चार ज्ञानों के सिवाय शेष तीन अज्ञान और चक्षुदर्शन आदि प्रथम तीन दर्शन कुल छह उपयोग होते हैं ।'
लेकिन मात्र कार्मग्रंथिक मतानुसार इन छह मार्गणाओं में उपयोगों का निर्देश इस प्रकार जानना चाहिए कि मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान, विभंगज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन यह पांच उपयोग होते हैं ।
केवलज्ञान और केवलदर्शन मार्गणा में केवलज्ञान और केवलदर्शन यह दो उपयोग होते हैं । इसका कारण गाथा में स्पष्ट किया जा चुका है कि 'केवलदुगेण सेसा न होंति उवओगा' - केवली के छद्मों का क्षय हो जाने से छद्मसहचारी मतिज्ञान आदि दस उपयोग संभव नहीं हैं ।
चक्षु, अचक्षु और अवधिदर्शन इन तीन दर्शनमार्गणाओं में केवलद्विक से हीन शेष दस उपयोग होते हैं । इसका कारण यह है कि यह तीनों दर्शन बारहवें गुणस्थान तक पाये जाते हैं और ये सभी गुणस्थान छाद्मस्थिक अवस्थाभावी हैं । अतः क्षायिकभावरूप केवलद्विक उपयोग नहीं होते हैं, जिससे शेष दस उपयोग माने जाते हैं ।
अनाहारकमार्गणा में मनपर्यायज्ञान और चक्षुदर्शन के सिवाय शेष दस उपयोग होते हैं। क्योंकि ये उपयोगद्वय पर्याप्त अवस्थाभावी
१ यह कथन कार्मग्रंथिक और सैद्धान्तिक दोनों अपेक्षाओं का समन्वय करके किया है । क्योंकि कार्मग्रंथिक पहले तीन गुणस्थानों में अज्ञान मानते हैं और सैद्धान्तिक विभंगज्ञानी को अवधिदर्शन मानते हैं तथा सासादनगुणस्थान में मिथ्यात्व के उदय का अभाव होने से अज्ञान न मानकर ज्ञान मानते हैं । यहाँ जो अज्ञानत्रिक आदि छह मार्गणाओं में अवधिदर्शन माना उसमें सैद्धान्तिक अपेक्षा और सासादन में अज्ञान माना उसमें कार्मग्रंथिक अपेक्षा है |
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