Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाया १६-१८
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भी अयथार्थ रूप में श्रद्धा करे तब वह मिथ्यादृष्टि है और जब एक भी द्रव्य या पर्याय के विषय में बुद्धि की मंदता के कारण सम्यग्ज्ञान अथवा मिथ्याज्ञान का अभाव होने से न तो एकान्त श्रद्धा होती है और न एकान्त अश्रद्धा, तब वह मिश्रदृष्टि कहलाता है। इस प्रकार जब श्रद्धा-अश्रद्धा दोनों न हों तब उसे मिश्रदृष्टि कहते हैं । परन्तु जब एक भी वस्तु या पर्याय के विषय में एकान्त अश्रद्धा हो तब उसे मिथ्यादृष्टि ही कहा जायेगा।
२. सासादनगुणस्थान-आय--उपशम सम्यक्त्व के लाभ का जो नाश करे उसे आयसादन कहते हैं । व्याकरण के नियम के अनुसार इसमें 'य' शब्द का लोप होने से आसादन शब्द बनता है । अतः जो उपशम सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबंधिकषाय के उदय से सम्यक्त्व को छोड़कर मिथ्यात्व की ओर उन्मुख है, किन्तु अभी तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं किया है, तब तक अर्थात् जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवालिका पर्यन्त सासादनसम्यग्दृष्टि कहलाता है और उस जीव के स्वरूपविशेष को सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थान कहते हैं।
जिस प्रकार पर्वत से गिरने और अभी भूमि पर न आने के पहले मध्य में जो समय है, उसे न पर्वत पर ठहरने का और न भूमि पर ठहरने का समय कह सकते हैं, किन्तु अनुभयकाल है। इसी प्रकार अनन्तानुबंधिकषायों के उदय होने से सम्यक्त्वपरिणामों के छूटने पर और मिथ्यात्वपरिणामों के प्राप्त न होने पर मध्य के अनुभयकालभावी परिणामों को सासादनगुणस्थान कहते हैं।
यद्यपि इस गुणस्थान के समय जीव मिथ्यात्व की ओर उन्मुख है, तथापि जिस प्रकार खीर खाकर उसका वमन करने वाले को विलक्षण स्वाद का अनुभव होता है, इसी प्रकार सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व की ओर उन्मुख हुए जीव को भी कुछ काल तक सम्यक्त्व गुण का
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