Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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से पहले मार्गणाओं के भेद और उनके लक्षण बतलाते हैं ।
मार्गणा के भेद
संक्षेप में मार्गणा का लक्षण पहले बतलाया जा चुका है कि समस्त जीव जिन भावों के द्वारा और जिन पर्यायों में अनुमार्गण किये जाते हैं, उन्हें मार्गणा कहते हैं ।
पंचसंग्रह (१)
लोक में विद्यमान जीवों के अन्वेषण का मुख्य आधार है बाह्य आकार-प्रकार की अवस्था विशेष और उनमें विद्यमान त्रिकालावस्थायी भावों का समन्वय । यद्यपि शास्त्रों में जीवों के अन्वेषण के लिए मार्गणा के अतिरिक्त और दूसरे भी दो प्रकार बताये हैं- जीवस्थान और गुणस्थान । जीवस्थानों के द्वारा जीवों का जो अनुमार्गण किया जाता है, वहाँ सिर्फ बाह्य आकार-प्रकार और अवस्था की अपेक्षा मुख्य है और उनके आधार हैं शरीरधारी संसारी जीव । जिससे इस अन्वेषण में उन जीवों के आत्मिक भावों का ग्रहण - बोध नहीं हो पाता है और गुणस्थानों में सिर्फ भावों की अपेक्षा किये जाने वाले अनुमार्गण से शरीर, इन्द्रिय आदि बाह्य आकार-प्रकार की विभिन्नता रखने वाले जीवों का ग्रहण नहीं होता है । लेकिन मार्गणास्थानों की उभयदृष्टि है । जिससे उनके द्वारा किये जाने वाले अन्वेषण की ऐसी विशेषता है कि बाह्य शरीर आदि आकार-प्रकार और भावों से युक्त सभी प्रकार के जीवों का ग्रहण - अन्वेषण हो जाता है । इसीलिये मार्गणास्थानों की कुछ विशेषता के साथ व्याख्या की जाती है ।
जीव राशि अनन्त है । उन अनन्त जीवों में से जो जीव सकर्मा होकर संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं, उन्हें संसारी और कर्मरहित संसारातीत जीवों को मुक्त कहते हैं इस प्रकार की भिन्नता होने
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