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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ६-१२
११. भव्य मार्गणा - तथारूप अनादि पारिणामिकभाव द्वारा मोक्ष-. गमन के योग्य जो आत्मा उसे भव्य' और तथाप्रकार के अनादि पारिणामिकभाव द्वारा मोक्षगमन के जो आत्मा अयोग्य उसे अभव्य कहते हैं । यहाँ भव्य के ग्रहण से उसके प्रतिपक्षभूत अभव्य का भी ग्रहण करना चाहिये । इसलिये इसके दो भेद हैं- १. भव्य, २. अभव्य ।
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१२. – सम्यक्त्वमार्गणा - सम्यक् शब्द प्रशंसा अथवा अविरुद्ध अर्थ का द्योतक है । अतः सम्यक् जीव का भाव - परिणामविशेष सम्यक्त्व कहलाता है । सम्यक्त्व के तीन भेद हैं - १. क्षायिक, २. क्षायोपशमिक, ३. औपशमिक । सम्यक्त्व के ग्रहण से उसके प्रतिपक्षी १. मिथ्यात्व, २. सासादन और ३. मिश्र ( सम्यग् - मिथ्यात्व) का भी ग्रहण कर लेना चाहिये | इस प्रकार सम्यक्त्वमार्गणा के कुल छह भेद हैं ।
१३. संज्ञीमार्गणा - जिसके द्वारा पूर्वापर का विचार किया जा सके, उसे संज्ञा कहते हैं । संसारी जीवों के पास विचार करने का साधन मन है । अतः मन वाले जीवों को संज्ञी और उनके प्रतिपक्षी मनरहित जीवों - एकेन्द्रियादि जीवों को असंज्ञी कहते हैं । इसके दो भेद हैं- १. संज्ञी और २. असंज्ञी ।
१४. आहारमार्गणा - ओज, लोम और कवल, इन तीन प्रकार के आहार में से किसी भी प्रकार का आहार जो करता है उसे आहारीआहारकर और इन तीनों में से एक भी प्रकार का आहार जो नहीं
१ भव्यस्तथारूपानादिपारिणामिकभावात्सिद्धिगमनयोग्यः ।
- पंचसंग्रह मलयगिरि टीका पृ. १२ २ तीनों प्रकार के सम्यक्त्व का विशेष स्वरूप उपशमनाकरण में देखिये | सम्यक्त्व की प्राप्तिविषयक चर्चा का सारांश परिशिष्ट में दिया है ।
३ ओजोलोमप्रक्ष पाहाराणामन्यतममाहारयतीत्याहारकः ।
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- पंचसंग्रह मलय. टी. पृ. १३
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