________________
पंचसंग्रह (१) - 'केवल थावर .............."न संभवइ' अर्थात् केवलज्ञान, केवलदर्शन और उसकी सहभावी यथाख्यातचारित्र इन तीन मार्गणाओं में तथा वायुकाय को छोड़कर पृथ्वी, अप, तेज और वनस्पतिकाय इन चार स्थावरों और विगले-द्वीन्द्रिय, स्त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय इन दस मार्गणाओं में वैक्रिय और वैक्रिय मिश्र यह दो काययोग नहीं होते हैं । इसका कारण यह है कि लब्धिप्रयोग में प्रमाद कारण है और सातवें गुणस्थान से आगे किसी भी गुणस्थान में लब्धिप्रयोग नहीं होता है, जिससे केवल द्विक और यथाख्यातसंयममार्गणा में वैक्रियद्विक नहीं होते हैं तथा वायुकायिक जीवों के अतिरिक्त शेष पृथ्वीकायिक आदि स्थावरचतुष्क आदि में लब्धि होती ही नहीं है, जिससे उनमें वैक्रियद्विक काययोग संभव नहीं हैं। इन सब कारणों से केवल द्विक आदि दस मार्गणाओं में वैक्रियद्विक काययोग पाये जाने का निषेध किया है।
अब आहारकद्विक काययोगों का विचार करते हैं कि आहारकद्विक-आहारक और आहारकमिश्र यह दोनों काययोग आहारकलब्धिसंपन्न चतुर्दश पूर्वधर संयत मुनि के सिवाय अन्य किसी को नहीं होते हैं, अतः 'जायइ चोद्दसपुव्विस्स' यह विशेषण जिन मार्गणाओं में घटित हो ऐसी मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति इत्यादि मागणाओं में स्वबुद्धि से योजना कर लेना चाहिए । अर्थात् जिन मार्गणाओं में चौदह पूर्वो का अध्ययन संभव हो, उन मार्गणाओं में आहारक और आहारकमिश्रकाय योग मानना चाहिये, शेष मार्गणास्थानों में नहीं । जैसे कि पूर्वोक्त मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय के उपरान्त त्रसकाय, पुरुष, नपुंसक वेद, ये दो वेद आदि ।
जिन मार्गणाओं में आहारकद्विक काययोग संभव हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं-- गतिमार्गणा में-मनुष्यगति, इन्द्रियमार्गणा में-- पंचेन्द्रिय, कायमार्गणा में-त्रस, योगमार्गणा में-तीनों योग, वेदमार्गणा में----पुरुष नपुंसक वेद, कषायमार्गणा में चारों कषाय, ज्ञानमार्गणा में-मति, श्रुत, अवधि, मनपर्याय ज्ञान, संयममार्गणा में सामायिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |