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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ६-१२ चार-चार और औदारिक काययोग एक, कुल मिलाकर नौ योग परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसंपराय संयम में होते हैं। ___ सम्यग्मिथ्यादृष्टि में परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसंपराय संयम में प्राप्त पूर्वोवत नौ योगों के साथ वैक्रिय योग को मिलाने पर दस योग होते हैं । इसमें वैक्रिययोग मिलाने का कारण यह है कि देव और नारक सम्यगमिथ्यादृष्टि गुणस्थान वाले होते हैं तथा इस मिश्र सम्यक्त्व की यह विशेषता है कि इसमें मृत्यु नहीं होती है, जिससे अपर्याप्त अवस्था में यह नहीं पाया जाता है । इसलिए अपर्याप्त दशाभावी कार्मण, औदारिक मिश्र और वैक्रिय मिश्र ये तीन योग नहीं होते हैं तथा चौदहपूर्व का ज्ञान भी संभव न होने से आहारकद्विक योग भी नहीं होते हैं । इसी कारण कार्मण, औदारिकमिश्र, वैक्रिय मिश्र और आहारकद्विक इन पाँच योगों को छोड़कर शेष दस योग मिश्र सम्यक्त्व में माने हैं।
परिहारविशुद्वि और सूक्ष्मसंपराय संयम में प्राप्त पूर्वोक्त नौ योगों में वैक्रियद्विक योग को मिलाने पर देशविरत मार्गणा में ग्यारह योग होते हैं । वैक्रियद्विक को देशविरत संयम में मानने का कारण यह है कि वैकियलब्धि की संभावना वहाँ है । अंबड़ आदि श्रावकों द्वारा वैकियलब्धि से वैक्रिय शरीर बनाये जाने का उल्लेख आगमों में देखने को मिलता है। किन्तु श्रावक के चतुर्दश पूर्वधर नहीं होने से उसमें आहारकद्विक योग तथा व्रत का पालन पर्याप्त अवस्था में संभव होने से औदारिकमिश्र और कार्मण योग नहीं माने जाते हैं । इसलिए आहारकद्विक, औदारिकमिश्र और कार्मण इन चार योगों के सिवाय शेष ग्यारह योग देशविरत मार्गणा में माने गये हैं।
यथाख्यातसंयम में भी उपर्युक्त नौ योगों में औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग के मिलाने पर ग्यारह योग होते हैं। इन दोनों योगों का ग्रहण केवलिसमुद्घात की अपेक्षा किया गया है । क्योंकि केवलिसमुद्घात के दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिकमिश्र और तीसरे,
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