Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह
____ अथवा पदार्थ के यथार्थ स्वरूप के चिन्तन करने को सत्य कहते हैं
और इस प्रकार से पदार्थों को विषय करने वाले मन को सत्यमन कहते हैं।' जैसे कि जीव है, वह द्रव्यरूप में सत् और पर्यायरूप में असत् है और अपने-अपने शरीरप्रमाण है, इत्यादि रूप में जिस प्रकार से वस्तु का स्वरूप है, उसी प्रकार से उसका विचार करने में तत्पर मन सत्यमन कहलाता है। अर्थात् समीचीन रूप से पदार्थ को विषय करने वाले मन को सत्यमन कहते हैं और उसके द्वारा होने वाले योग को सत्य मनोयोग कहते हैं।
असत्य मनोयोग-सत्य से विपरीत को असत्य कहते हैं। जैसे कि जीव नहीं है, अथवा एकान्त नित्य है या एकान्त अनित्य है, इत्यादि, जिस प्रकार से वस्तु का स्वरूप नहीं है, उस रूप में उसका विचार करने में तत्पर मन असत्यमन कहलाता है और उसके द्वारा होने वाले योग को असत्य मनोयोग कहते हैं।
सत्यासत्य मनोयोग-इसको संक्षेप में उभय या मिश्र मनोयोग भी कहते हैं । सत्य और असत्य से मिश्रित अर्थात् जिसमें सत्यांश भी हो और आंशिक असत्य भी हो, इस प्रकार सत्य-असत्य से मिश्रित को सत्यासत्य कहते हैं। जैसे कि धव, खदिर और पलाश आदि से मिश्रित
और अधिक अशोकवृक्ष वाले वन को 'यह अशोकवन ही है' ऐसा विकल्पात्मक चिन्तन सत्यासत्य कहलाता है और उस प्रकार के मन को सत्यासत्य–मिश्रमन कहते हैं तथा उसके द्वारा होने वाले योग को सत्यासत्य (मिश्र-उभय) मनोयोग कहते हैं ।
१ सब्भावमणो सच्चो । २ (क) तद्विपरीतमसत्यम् ।
(ख) सत्यविपरीतमसत्यम् ।
(ग) तबिवरीओ मोसो। ३ (क) सत्यासत्यं द्विस्वभावं ।
(ख) जाणुभयंअसच्चमोसोत्ति।
-गोम्मटसार, जीवकांड गाथा २१७
-पंचसंग्रह, स्वोपज्ञवृत्ति पृ. ४ -पंचसंग्रह, मलयगिरिटीका पृ. ५ -गोम्मटसार, जीवकांड गाथा २१७
-पंचसंग्रह, स्वोपज्ञवृत्ति पृ. ४ -गोम्मटसार, जीवकांड गाथा २१७
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