Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह (१) एकेन्द्रिय में माने गए तीन उपयोगों में श्र त-अज्ञान उपयोग को ग्रहण करने पर जिज्ञासू प्रश्न करता है कि
प्रश्न--स्पर्शनेन्द्रिय मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने से एकेन्द्रियों में मति उपयोग माना जा सकता है, लेकिन भाषा और श्रवणलब्धि न होने के कारण उनमें श्रु त उपयोग सम्भव नहीं है। क्योंकि शास्त्रानुसार श्रृं तज्ञान उसे कहते हैं जो बोलने की इच्छा वाले अथवा वचन सुनने वाले को होता है।
उत्तर-एकेन्द्रिय जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय के सिवाय अन्य द्रव्येन्द्रियों के न होने पर भी वृक्षादि जीवों में पाँचों भाव इन्द्रियों तथा बोलने और सुनने की शक्ति न होने पर भी भाव त ज्ञान का होना शास्त्रसम्मत है। क्योंकि उनमें आहार संज्ञा (अभिलाष) विद्यमान है और यह आहार-अभिलाष क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष है। अभिलाष शब्द और अर्थ के विकल्प पूर्वक होता है और विकल्प सहित उत्पन्न होने वाले अध्यवसाय का नाम ही श्रु तज्ञान है ।
उक्त कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि एकेन्द्रियों में श्रत उपयोग न माना जाये तो उनमें आहार का अभिलाष नहीं घट सकता है । इसलिये बोलने और सुनने की शक्ति न होने पर भी उनमें अत्यन्त सूक्ष्म श्रुत उपयोग अवश्य मानना चाहिये और शास्त्र में भाषा और .. श्रवण लब्धि वाले को ही भाव त उपयोग बताने का तात्पर्य इतना ही है कि उक्त प्रकार की शक्ति वाले को स्पष्ट भाव त होता है और दूसरों को अस्पष्ट ।'
लब्धि-अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय की अपेक्षा तो मति-अज्ञान, श्रतअज्ञान और अचक्षुदर्शन यह तीन उपयोग होते हैं, लेकिन करण
१ एकेन्द्रियों में भावयु त प्राप्ति सम्बन्धी विशेष स्पष्टीकरण के लिए देखिए
विशेषावश्यकभाष्य गाथा १००-१०४ एवं टीका ।
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