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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ८
क्र० सं० जीवस्थान नाम
उपयोग संख्या, नाम १ सूक्ष्म एकेन्द्रिय अप० ३ मतिअ०, श्रुतअ० अचक्षुदर्शन
सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त ३ ॥ बादर एकेन्द्रिय अप० ३ , ,, ,, पर्याप्त ३ द्वीन्द्रिय अपर्याप्त ३ , पर्याप्त ३ वीन्द्रिय अपर्याप्त ३ , पर्याप्त ३ चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त ३ ___, पर्याप्त ४
चक्षुदर्शन असं० पंचे० अपर्याप्त ३
, , पर्याप्त ४ , " , चक्षुदर्शन __संज्ञी पंचे० अपर्याप्त ३ ,,
,, पर्याप्त १२ मतिज्ञान आदि केवलदर्शन पर्यन्त
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सिद्धान्त के अनुसार जीवस्थानों में उपयोग इस प्रकार जानना चाहिएअपर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय, इन चार जीवस्थानों में अचक्षु दर्शन, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान, मतिज्ञान, श्रु तज्ञान ये पांच उपयोग होते हैं। करण-अपर्याप्त की अपेक्षा संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त में केवलद्विक, मनपर्या__ यज्ञान और चक्ष दर्शन के सिवाय शेष आठ उपयोग समझना चाहिये।
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