________________
पंचसंग्रह (१)
क्र० सं०
जीवस्थान नाम
योग संख्या व नाम
५ द्वीन्द्रिय अपर्याप्त २ कार्मण, औदारिकमिश्र
, पर्याप्त २ औदारिक, असत्यामृषावचन ७ त्रीन्द्रिय अपर्याप्त २ कार्मण, औदारिकमिश्र
, पर्याप्त २ औदारिक, असत्यामृषावचन चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त २ कार्मण, औदारिकमिश्र
, पर्याप्त २ औदारिक, असत्यामृषावचन ११ . असं० पंचे० अपर्याप्त २ कार्मण, औदारिकमिश्र १२ , ,, पर्याप्त २ औदारिक, असत्यामृषावचन १३ संज्ञी पंचे० अपर्याप्त ३ कार्मण, औदारिकमिश्र,
वैक्रियमिश्र १४ , , पर्याप्त १५ सत्यमनोयोग आदि कार्मण
काययोग पर्यन्त सभी
१ मतान्तर से जीवस्थानों में काययोग के भेदों को इस प्रकार जानना
चाहिये
इन चौदह जीवस्थानों में से अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि सात में शरीरपर्याप्ति पूर्ण करने से पहले यथायोग्य औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र काययोग और शरीरपर्याप्ति पूर्ण कर लेने के बाद औदारिक, वैक्रिय काययोग होता है। अतः इस मत के अनुसार सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि छह अपर्याप्त जीवस्थानों में कार्मण, औदारिक मिश्र औदारिक यह तीन काययोग और अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय में कार्मण, औदारिकमिश्र, औदारिक, वैक्रियमिश्र, वैक्रिय यह पाँच काययोग माने जायेंगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org