Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंच संग्रह पांच इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना मर्यादा में रहे हुए रूपी पदार्थों का जो सामान्य ज्ञान अर्थात् उनके सामान्य अंश का ग्रहण हो, वह अवधिदर्शन है।'
लोक तथा अलोक में रहे हुए समस्त रूपी-अरूपी पदार्थों का जो सामान्य बोध, वह केवलदर्शन कहलाता है । २
दर्शनोपयोग के उक्त चार भेदों में से अचक्षु, चक्षु और अवधि दर्शन का अंतरंग कारण अपने-अपने दर्शनावरणकर्म का क्षयोपशम और केवलदर्शन का कारण केवलदर्शनावरण कर्म का क्षय है। __दर्शनोपयोग के अचक्ष दर्शन आदि चाद भेद मानने पर जिज्ञासु प्रश्न पूछता है
प्रश्न-इन्द्रिय और मन द्वारा होने वाले पदार्थ के सामान्यबोध को संक्षेप में इन्द्रियदर्शन कहकर अवधि तथा केवल दर्शन, इस प्रकार दर्शनरूप अनाकारोपयोग के तीन भेद कहना युक्तिसंगत है। यदि विस्तार से ही भेद बतलाना इष्ट है तो स्पर्शन आदि पांच इन्द्रियों
और मन द्वारा होने वाले पदार्थ के सामान्यबोध को १ स्पर्शनेन्द्रियदर्शन, २ रसनेन्द्रियदर्शन, ३ घ्राणेन्द्रियदर्शन, ४ चक्षुरिन्द्रियदर्शन ५ श्रोत्रन्द्रियदर्शन और ६ मनोदर्शन कहकर अवधि और केवल दर्शन सहित दर्शनोपयोग के आठ भेद बताना चाहिये । फिर दर्शनोपयोग के चार भेद ही क्यों बतलाये हैं ?
उत्तर-लोकव्यवहार में चक्षु की प्रधानता होने से उसके द्वारा
(ख) तत्र अचक्षुषा चक्षुर्वर्जशेषेन्द्रियमनोभिर्दर्शनं स्वस्वविषये सामान्यग्रहण अचक्ष दर्शनम् । चक्ष षादर्शनं रूप सामान्यग्रहणं चक्षु दर्शनम् ।
-पंचसंग्रह मलयगिरिटीका, पृ. ७ १ रूपिसामान्यग्रहणमवधिदर्शनम् । -पंचसंग्रह मलयगिरिटीका, पृ. ७ २ सकलजगमाविवस्तुसामान्यपरिच्छेदरूपं दर्शन केवलदर्शनं ।
-पंचसंग्रह मलय गिरिटीका, पृ. ७
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