Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ५
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सारांश यह कि जो ज्ञान केवल, असहाय और अद्वितीय हो, उसे केवलज्ञान कहते हैं ।
ये पांच ज्ञान और तीन अज्ञान, साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग ) के आठ भेद हैं ।
दर्शनोपयोग के भेदों के लक्षण
साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग ) के आठ भेदों के लक्षणों का निर्देश करने के पश्चात् अब दर्शनोपयोग (अनाकारोपयोग) के भेद और उनके लक्षण बताते हैं ।
दर्शनोपयोग के चार भेद हैं - १. अचक्षुदर्शन २. चक्षुदर्शन ३. अवधिदर्शन ४. केवलदर्शन ।'
नाम, जाति, लिंग आदि विशेषों का विवक्षा किये बिना पदार्थ का जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे दर्शन कहते हैं ।
अतः चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रियों और मन से अपने-अपने विषय का जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे अचक्षु दर्शन कहते हैं और चक्षुइन्द्रिय के द्वारा अपने विषयभूत पदार्थ का जो सामान्य ज्ञान हो, वह चक्षुदर्शन है । "
१ चक्खु अचक्खू ओही दंसण मधकेवलं णेयं । २ (क) जं सामण्णं गहणं भावाणं णेव कट्ट्आयारं । अविसेसिऊण अट्ठे दंसणमिदि भण्णदे समए ॥ (ख) भावानं सामण्णविसेसयाणं सरूवमेत्तं जं । aurणहीणगहणं जीवेण य दंसणं होदि ॥
——— द्रव्यसंग्रह, गाथा ૪
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- दि. पंचसंग्रह १ / १३८
- गोम्मटसार जीवकांड, गाथा ४८२
३ (क) चक्खूण जं पयासइ दीसइ तं चक्खुदंसणं बेंति । सेसिदियप्पयासो णायव्वो सो अचक्खूति ॥
- गोम्मटसार जीवकांड, ४८३
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