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________________ योगोपयोगमार्गणा अधिकार : गाथा ५ ३६ सारांश यह कि जो ज्ञान केवल, असहाय और अद्वितीय हो, उसे केवलज्ञान कहते हैं । ये पांच ज्ञान और तीन अज्ञान, साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग ) के आठ भेद हैं । दर्शनोपयोग के भेदों के लक्षण साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग ) के आठ भेदों के लक्षणों का निर्देश करने के पश्चात् अब दर्शनोपयोग (अनाकारोपयोग) के भेद और उनके लक्षण बताते हैं । दर्शनोपयोग के चार भेद हैं - १. अचक्षुदर्शन २. चक्षुदर्शन ३. अवधिदर्शन ४. केवलदर्शन ।' नाम, जाति, लिंग आदि विशेषों का विवक्षा किये बिना पदार्थ का जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे दर्शन कहते हैं । अतः चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रियों और मन से अपने-अपने विषय का जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे अचक्षु दर्शन कहते हैं और चक्षुइन्द्रिय के द्वारा अपने विषयभूत पदार्थ का जो सामान्य ज्ञान हो, वह चक्षुदर्शन है । " १ चक्खु अचक्खू ओही दंसण मधकेवलं णेयं । २ (क) जं सामण्णं गहणं भावाणं णेव कट्ट्आयारं । अविसेसिऊण अट्ठे दंसणमिदि भण्णदे समए ॥ (ख) भावानं सामण्णविसेसयाणं सरूवमेत्तं जं । aurणहीणगहणं जीवेण य दंसणं होदि ॥ ——— द्रव्यसंग्रह, गाथा ૪ Jain Education International - दि. पंचसंग्रह १ / १३८ - गोम्मटसार जीवकांड, गाथा ४८२ ३ (क) चक्खूण जं पयासइ दीसइ तं चक्खुदंसणं बेंति । सेसिदियप्पयासो णायव्वो सो अचक्खूति ॥ - गोम्मटसार जीवकांड, ४८३ For Private & Personal Use Only (क्रमशः ) www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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