________________
योगोपयोगमार्गणा : गाथा ३
१५
इस बन्ध के हेतुओं-मिथ्यात्वादि को बन्धहेतु कहते हैं। इनका विचार चौथे बंधहेतुद्वार में किया जायेगा।
बन्धविधि-पूर्वोक्त स्वरूप वाले बंध के प्रकृतिबंध आदि प्रकारों को बन्धविधि कहते हैं। इनका विचार बन्धविधि नामक पांचवें द्वार में किया जायेगा। ___ इस प्रकार से इन पांच द्वारों का संक्षेप में स्वरूप और उनमें किये जाने वाले वर्णन की रूपरेखा जानना चाहिये।
अब यथाक्रम से उनका विस्तार से विवेचन करते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org