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पंचसंग्रह
जीवस्थानों, मार्गणास्थानों और गुणस्थानों में की जायेगी तथा साथ ही मार्गणास्थानों में जीवस्थानों और गुणस्थानों का भी विचार किया जायेगा।
बन्धक-जो स्व आत्मप्रदेशों के साथ आठ प्रकार के कर्मों को सम्बद्ध करते हैं जोड़ते हैं, उन्हें बन्धक कहते हैं।' इन कर्म बांधने वाले जीवों का विचार बन्धक नामक दूसरे अर्थाधिकार में किया जायेगा। __बन्धव्य-बन्धक जीवों द्वारा बाँधने योग्य आठ प्रकार के कर्मों को बन्धव्य कहते हैं। इनका विचार तीसरे बन्धव्य अर्थाधिकार में किया जायेगा।
बन्धहेतु-कर्म-परमाणुओं के साथ आत्म-प्रदेशों का अग्नि और लोहपिण्ड के समान परस्पर एकाकार सम्बन्ध होने को बन्ध कहते हैं। ___ अथवा कर्म-प्रदेशों का आत्म-प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाह हो जाना बन्ध है।
१ (क) बध्नन्त्यष्टप्रकारं कर्म स्वप्रदेशैरिति बंधकाः ।
-पंचसंग्रह, स्वोपज्ञटीका पृ. ३ (ख) बध्नन्ति संबध्नन्त्यष्टप्रकारं कर्म स्वप्रदेशैः सहेति बंधकाः ।
-पंचसग्रह, मलयगिरिटीका पृ. ४ २ (क) बद्धव्यम् इति बंधनीयं जीवैरात्मप्रदेशः ।
--पंचसंग्रह, स्वोपज्ञटीका पृ. ३ (ख) बंद्धव्यं तदेवाष्टप्रकारं कर्म।
-पंचसंग्रह, मलयगिरिटीका पृ. ४ ३ कर्मपरमाणुभिः सहात्मप्रदेशानां वह्ययस्पिडवदन्योऽन्यानुगमलक्षणः संबंधो बंधः।
-पंचसंग्रह, मलयगिरि टीका पृ. ४ ४ आत्मकर्मणोरन्योन्यप्रवेशानुप्रवेशलक्षणो बंधः ।
-तत्त्वार्थराजवार्तिक १/४/१७/२६/२६
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