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योगोपयोगमार्गणा : गाथा ३
उत्पन्न होती है । संसारी जीव सलेश्य हैं और मुक्त जीव अलेश्य । प्रस्तुत में सलेश्य - संसारी जीव की योगशक्ति अभिप्रेत है।
संसारी जीवों के पास परिणमन, अवलम्बन और ग्रहण के साधन रूप में मन, वचन और काय रूप सहकारी कारणों के भेद से योग के मुख्य तीन भेद हैं' और उनके अवान्तर पन्द्रह भेद होते हैं । जिनके नाम यथाप्रसंग आगे बतलाये जायेंगे ।
उपयोग — जीव की चेतनाशक्ति का व्यापार | जिससे आत्मा वस्तुओं को जानने के प्रति प्रवृत्ति करती है, ऐसी जीव की स्वरूपभूत चेतनाशक्ति का व्यापार उपयोग कहलाता है । २
अथवा जोव का जो भाव वस्तु को ग्रहण करने के लिये प्रवृत्त होता है, उसे उपयोग कहते हैं ।
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अथवा आत्मा के चैतन्यानुविधायी परिणाम को उपयोग कहते हैं ।
चेतना की परिणतिविशेष का नाम उपयोग है। उपयोग जीव का असाधारण लक्षण है । "
उपयोग के बारह भेद हैं । इनके नाम और लक्षण आगे यथाप्रसंग बतलाये जायेंगे |
योगोपयोगमार्गणा में इन योग और उपयोग की मार्गणा - विचारणा
१ परिणामालंबणगहणसाहणं तेण लद्धनामतिगं ।
गा० ४
- कर्म प्रकृति, २ उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं प्रति व्यापार्यते जीवोऽनेनेत्युपयोगः, बोधरूपो जीवस्य स्वतत्त्वभूतो व्यापारः । -- पंचसंग्रह टीका, पृ० ४
३ वत्थुणिमत्तो भावो जादो जीवस्स होदि उवओगो ।
४ चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोगः । ५ उपयोगो लक्षणम् ।
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- गो. जीवकाण्ड, गाथा ६७२ - सर्वार्थसिद्धि २ / ८ -तत्त्वार्थ सूत्र २/८
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