Book Title: Panchsangraha Part 01
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह
सारांश यह है कि संकलन अथवा वर्ण्यविषयों की अपेक्षा नामकरण के कारण का विचार किया जाये तो पूर्व गाथा में जो 'वोच्छामि पंचसंग' पद दिया था, तदनुरूप हो ग्रन्थ का 'पंचसंग्रह' नाम यथार्थ सिद्ध होता है ।
पांच द्वारों के नाम
जिज्ञासु यहाँ प्रश्न पूछता है कि आपने पांच द्वारों का संकेत तो कर दिया, लेकिन वे द्वार कौन-से हैं ? उनके नाम क्या हैं ? यह नहीं बताया, तो इसके उत्तर में ग्रन्थकार पांच द्वारों का निर्देश करते हैंएत्थ य जोगुवयोगाणमग्गणा बंधगा य वत्तव्वा । तह बंधिपव्व य बंधहेयवो बंधविहिणो य ॥ ३ ॥ शब्दार्थ - एत्थ - यहाँ, इस प्रकरण में, य-और, जोगुवयोगाणमग्गणायोग - उपयोग मार्गणा, बंधगा - बन्धक, य - और, वत्तव्वा — कथन किया जायेगा, तह — तथा, बंधियव्व — बन्धव्य, बांधनेयोग्य, य-और, बंधहेयवो-बंधहेतु, बंधविहिणो-बंधविधि, य-और ।
गाथार्थ - इस प्रकरण में योगोपयोगमार्गणा, बन्धक, बन्धव्य, बन्धहेतु और बन्धविधि इन पांच द्वारों का कथन किया जायेगा ।
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विशेषार्थ - गाथा में ग्रन्थ के पांच अर्थाधिकारों के नाम बताये हैं कि वे कौन हैं और प्रत्येक में किस-किस विषय का विवेचन किया जायेगा । उन अर्थाधिकारों के नाम इस प्रकार हैं
१. योगोपयोगमार्गणा - योग और उपयोग के सम्बन्ध में विचार । २. बन्धक -- बांधने वाले कौन जीव हैं ? इसका विचार | ३. बन्धव्य - बांधने लायक क्या है ? इसका विचार | ४. बन्धहेतु - बांधने योग्य कर्मों के बन्धहेतुओं का विचार । ५. बन्धविधि -- प्रकृतिबन्ध आदि बन्ध के प्रकारों का विचार | पांच ग्रन्थों के संग्रह की तरह पांच अर्थाधिकार होने से इस प्रकरण का 'पंचसंग्रह' यह सार्थक नामकरण किया गया है ।
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